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जीने की कला (2)

BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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“जीने की कला” के दूसरे अंक में सबसे पहले मैं समस्याओं के कारण पर चर्चा करना चाहूँगा कि किसी आम जिन्दगी में ये समस्याएँ क्यों आती है?
१. खुद से अनजान रहना और खुद का मूल्याङ्कन न करना.
२. खुद की योग्यता को दूसरो से कम आंक कर अंदर ही अंदर हीन भावना से ग्रसित होना, अपनी जिम्मेदारियों को दुसरो पर थोपने की कोशिश करना.
3. योग्यता से ज्यादा पाने की इच्छा करना
४. खुद पर भरोसा, यकीन और आत्मविश्वाश की कमी का होना
5. अपने अंदर की सच्चाई को छुपाना
६. धैर्य की कमी
७. एक-दूसरे से आगे निकलने की आपा-धापी में इर्ष्या, द्वेष और दुश्मनी का बढ़ना
८. फिर अंध-विश्वास का सहारा लेना.
9. तुलनात्मक प्रवृति का कुछ ज्यादा ही प्रबल होना, उचित फैसला लेने में खुद असक्षम होना
१०. छोटी सी ख़ुशी पाने के लिए बहुत बड़ा जोखिम मोल लेना
और भी कारण हो सकते है, समस्याओं के, क्योंकि इस संसार में समस्याओं की कमी नहीं है. और ये समस्या दिन-ब-दिन बढ़ती ही जाती है. घटती कभी नहीं. क्योंकि समस्याओं के कारण जो मैंने ऊपर गिनाये है, वो कारण पहले थे अब ये कारण बीमारी बन चुके है. इन बीमारियों से निजात पाना बहुत ही मुश्किल है. …..परन्तु असंभव नहीं ……
मुश्किल इसलिए है, क्योंकि ये बीमारी अब लोगो की आदतों में शामिल हो चुकी है. और इंसान की फितरत में किसी आदतों को छोड़ना आसान नहीं होता है. कुछ एक लोग ऐसे होते है जिनमे वो जज्बा होता है कुछ भी कर गुजरने का. वैसे लोगो के लिए तो बस एक इशारे की जरुरत होती है, और वो अपने आप को बदल देते है. मेरा ये लेख उन लोगो के लिए बेहतर साबित होगा. बाकी और लोगों के लिए ये सिर्फ एक लेख, एक कहानी, या उनकी समझ से जो भी वो मान ले. ….
अगर आप ध्यान से अपनी जिन्दगी पर अध्ययन करें तो आपको पता चलेगा की अपने सभी समस्याओं के जिम्मेदार आप खुद ही है. अगर आप खुश है तो इसकी वजह भी आप खुद है, अगर आप दुखी है तो भी इसके जिम्मेदार खुद है. …… सबसे बड़ी समस्या इच्छाओ की है, जितना अधिक इच्छा हम खुद से नहीं रखते उससे कही ज्यादा दुसरो से रख लेते है. अगर कभी खुद से रख भी लिया तो आवश्यकता से इतना ज्यादा रख लिया की उसके न पूरा होने पर परेशानी होती है.
कभी आपने गौर किया की एक बाप अपने बेटे से कुछ ज्यादा ही उम्मीद लेकर जीता है. अगर उसके बेटे को परीक्षा में २-४ अंक कम आये हो किसी दुसरे बच्चो से, तो देखिये जरा उस बाप की बकबास अपने बेटो पर. बाप अपने बेटो की योग्यता नहीं देखता बल्कि पड़ोस के बच्चो से कितना कम या कितना ज्यादा अंक आया है, बस इतना ही देखता है. अपने बच्चो को वो हीन भावना से ग्रसित कर देता है. वो बच्चा उस हीन भावना को लेकर आगे किस तरह चलेगा आप सोचिये. “एक बीमारी कई दुसरे बीमारियों को बुलावा देता है. अगर उसका इलाज पहले ही न किया जाए“
अगर अपनी योग्यता किसी विशेष काम के लिए कम हो तो, हम उस योग्यता को बढ़ाने या उस कमजोरी को मिटाने के बजाए उसे छुपाते रहते है, और फिर हम उस काम में सफल न हुए तो कई तरह के अन्धविश्वासो का सहारा लेने लगते है, जिनसे कभी भी कोई लाभ न हुआ है न होगा, फिर रोने को बैठ जाते है, अपनी परेशानी सबको सुनाने लगते है, इससे क्या होगा जरा सोचिये. इस तरह के परेशानियों के बीज हम खुद ही बोते है.
अपनी आवश्यकता, अपनी जरुरत- अपने योग्यता के हिसाब से सुनिश्चित कर, सुखी बने.
आपको क्या लगता है की अगर आपके पास ज्यादा धन, संपत्ति हो जाये तो आप सुखी हो जायेंगे, आप शान्ति से जी सकेंगे. अगर आप ऐसा सोच रहे है तो गलत सोच रहे है. ये धन, संपत्ति — परेशानियों के, समस्याओं के, लोभ के, क्रोध के, काम के, अशांति के, मोह के वाहक होते है. जैसे-जैसे आपके पास धन बढ़ते जायेंगे आपकी इच्छाएं बढ़ती जायेंगी, आपके धन फिर भी कम पड़ जायेंगे. फिर एक नई समस्याओ से आप घिरने लगेंगे. आपको क्या लगता है. ये टाटा, बिरला, अम्बानी, और भी जितने धनाढ्य लोग है वे सभी सुख, शान्ति और चैन से जीते होंगे. बिलकुल नहीं, ये सभी आपसे भी ज्यादा समस्याओं से घिरे है. बेचैन है. आप सो भी लेते है. मगर इन्हें नींद भी नहीं आती. आपमें और इन धनाढ्य लोगों में इतना ही फर्क है की आप हज़ार से लाख बनाने में जुटे है. और वे अरब से खरब बनाने में, दोनों में वही इच्छाये है. अगर आपको अपनी इच्छा पूरी करने कोई गलत काम करना पड़ता हो तो आप कई बार सोचते है. अपने धर्म की, पाप की, पुण्य की, और भी कई तरह की बाते सोचते है. लेकिन वो नहीं सोचते, वो कुछ भी करने से बाज़ नहीं आते. पाप हो रहा हो या पुण्य, गरीब सताया जा रहा हो, या मारा जा रहा हो उन्हें सिर्फ अपनी इच्छा, अपनी हवस दिखाई देती है. क्या आपको ये पसंद है ?
परमात्मा द्वारा दिया गया आपका शरीर, आपकी जिन्दगी आपको कभी से भी पसंद नहीं है. आप खुद को कोसते रहते है. खुद पर भरोसा नहीं है आपको, खुद पर यकीं नहीं कर पाते. जिसका नतीजा ये होता है की आप अपने काम में पूरी तरह डूब नहीं पाते. अपने काम को एकाग्रता से कर नहीं पाते. फिर उस काम में आप सफल कैसे हो सकते है.
फिर हम जितना मेहनत करते है, उससे कहीं बहुत ज्यादा पाने की इच्छा रखते है. जितना मिला है उसमे जीना नहीं आता है हमे, खुश रहना नहीं आता है हमें. धैर्य की कमी है हममे.
परमात्मा द्वारा दिए गए उपहार में जो हमें मिला है उसके लिए हमने परमात्मा को कभी धन्यवाद नहीं किया और भी हम मांगते ही रहते है. पूजा करते है, प्रार्थना करते है. हवन करते है. और भी कई तरह के नौटंकिया करते है. सबमे परमात्मा से मांग ही करते है. बिना मांग के तो हमे परमात्मा याद ही नहीं आता.
परमात्मा द्वारा उपहार के रूप में मिली हुई जिन्दगी के लिए परमात्मा को धन्यवाद करते हुए, अपने योग्यता और रूचि के अनुसार चुने हुए काम को एकाग्रता से करके मिले हुए फल को ग्रहण कर खुश रहने की कला जिसे आती हो, उसे ही इस जगत में शान्ति मिल सकती है.
इस तरह से जीने के लिए हमें अतिरिक्त गुण और उर्जा की जरुरत होती है. जैसे आत्मविश्वाश, संकल्पशक्ति, इच्छाशक्ति, धैर्य, और ध्यान.
जीने की कला के अगले अंक में हम आपको बताएँगे क़ि –
१. आत्मविश्वाश कैसे बढ़ाया जाये ?
२. संकल्पशक्ति और इच्छाशक्ति कैसे मजबूत करें?
3. ध्यान कैसे करें?

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