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जीने की कला (३)

BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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जीने की कला के तीसरे अंक की शुरुआत पिछले अंक के सवाल से करते है. जिसके लिए मेरे पास बहुत सारे मेल आये है. जिसमे सवाल जवाब मांगने के साथ-साथ इस तरह के विषय को चुनने की हिम्मत दिखाने के लिए शुभकामनाये भी दी गयी है. इसलिए मेरे लिए ये बताना आवश्यक हो गया है.

सवाल था की =====>>
१. आत्मविश्वाश कैसे बढ़ाया जाये ?
२. संकल्पशक्ति और इच्छाशक्ति कैसे मजबूत करें?
3. ध्यान कैसे करें?


एक-एक कर मैं उपर्युक्त सवालो पर चर्चा करूँगा. सबसे पहले आत्मविश्वाश के बारे में चर्चा करते है.


(1) आत्मविश्वाश दो शब्दों से मिल कर बना हुआ है. आत्म + विश्वाश | दोनों शब्द एक इंसान को जीने के लिए बहुत ही मूल्यवान है. जैसे इस भारत देश में आज कोई मंदिर या मस्जिद जिन्दा है तो इसका सिर्फ इतना ही मतलब है की लोगो को उस पर विश्वास है. अगर आज कोई इश्वर को पूजता है तो उसका मतलब सिर्फ इतना है की उसे इश्वर पर विश्वास है. भले ही ये विश्वास, अंध-विश्वास ही सही.आत्म-विश्वास का मतलब है खुद पर विश्वास करना, और खुद पर विश्वास करने के लिए ये जरुरी है की वो पहले खुद को जाने, क्योंकि जानकर जो विश्वास होगा वो काफी देर तक, दूर तक आपका साथ देता रहेगा. अगर बिना जाने आप खुद पर विश्वास कर रहे है तो वो एक अधुरा विश्वास है. और उसका हाल वैसा ही होगा जैसे की थोड़े से दुःख पाने के बाद ही लोगो का इश्वर पर से विश्वास उठ जाता है. गालिया देने लगते है. कोसने लगते है. इश्वर को. ठीक वैसे ही लोग खुद को कोसते नज़र आते रहते है. खुद को तुच्छ समझते रहते है दूसरों से, ऐसे लोग कैसे खुद पर विश्वास कर सकते है. अगर वो खुद पर विश्वास नहीं करेंगे तो उन्हें हमेशा असफलता ही हाथ लगेगी, अगर कभी सफल हो भी गए तो भी वे खुश नहीं होंगे. ऐसा लगेगा जैसे हमने कुछ नहीं पाया.(असंतुष्टि) तो इसके लिए सबसे पहले खुद को जाने, खुद पर विश्वास करे, यकीं करे, श्रद्धा करना सीखे खुद पर, तभी आप किसी काम को पूर्ण रूप से कर सकते है. और तभी आप अपने पाए हुए मंजिल से संतुष्ट होंगे. अपने अंदर की खूबियों को जाने, पहचाने, नहीं तो किस्मत के भरोसे जीने के अलावा और कोई उपाए नहीं है. आपके अंदर जो भी खूबियाँ है उसे जाने, उसे और भी तरासे, परिपक्व करें, फिर आप मजबूत होंगे. खुद पर विश्वास करने में आसानी होगी. आज कोई भी ऐसा इंसान मिलना बहुत ही मुश्किल है जो खुद पर भरोसा करता हो……. हाँ अपने किस्मत पर, भाग्य पर या सफल होने के लिए किसी पूजा-पाठ या टोटके पर जरुर भरोसा करते है…. मैं पूरे दावे के साथ ये कहता हूँ की अगर इतना ही विश्वास कोई खुद पर करने लगे तो किसी पूजा-पाठ या किसी पंडितों के टोटके की कोई जरुरत नहीं होगी, और आप हमेशा सफल होंगे. काफी संतुष्ट दिखाई देंगे अपने जिन्दगी से, और भी ज्यादा खुश रह सकेंगे. और सफल होने के लिए जो एक और चीज अहम् होती है वो है धैर्य, तो धैर्य को भी समझे.


(2) संकल्प शक्ति बढाने के लिए सबसे पहले आपको ऊपर लिखे उपायों से खुद पर विश्वास करना सीखना होगा. उसके बाद अपने संकल्प शक्ति को बढ़ाने के लिए छोटे-छोटे प्रयोग करने होंगे. संकल्प शक्ति एक ऐसी शक्ति है जिसे अगर आप मजबूत कर लेते है तो दुनिया में कोई भी ऐसा काम नहीं है जिसे अगर आप पूरे मन से संकल्प कर ले तो वो पूरा न हो. और ये छोटे-छोटे प्रयोग आप घर के काम करते हुए, रास्ते पर चलते हुए, ऑफिस में बैठे हुए, गाड़ियों में सफ़र करते हुए भी कर सकते है. इस प्रयोग की ज़रूरत अगर आपको हो तो आप पूछ सकते है अपने ज़रूरत के हिसाब से. कि कौन से प्रयोग को आप जानना चाहते है.


इसके लिए सबसे पहले खुद पर विश्वास करते हुए, खुद को मजबूत करें और ये जाने की मैं जो करूँगा वो सही करूँगा, और मैं जो कर रहा हूँ वो सही कर रहा हूँ.


(3) ध्यान एक बहुत ही गहरी सोच का दूसरा रूप है. ध्यान कि विधि कोई एक नहीं है जिसे बताया जा सके. ध्यान कि विधि जानने के लिए सबसे पहले ये जानना जरुरी है कि ध्यान किस लिए किया जा रहा है. हाँ लगभग (सभी नहीं) जितने भी ध्यान कि विधियाँ है उसमे एक बात मिलती जुलती है की , ध्यान है पुर्णतः रिलैक्सेसन, चाहे वो किसी भी अवस्था में हो. आप रोजाना रात को सोते है, ये भी एक तरह का ध्यान है, जिसमे आदमी पुर्णतः रिलैक्स कि अवस्था में होता है, इसमें एक फायदा आपको सुबह दिखाई देता होगा कि, चाहे आप कितने ही थके हारे सोये हो, सुबह आप तरो-ताज़ा महसूस करते है, ठीक यही बात ध्यान में भी होता है, ध्यान के बाद आप खुद को तरो-ताज़ा महसूस करते है. शांति महसूस करते है.

सोने के रिलैक्सेसन, और ध्यान के रिलैक्सेसन में सिर्फ इतना ही फर्क होता है कि ध्यान में हम होश में होते है और सोने में बेहोश, होश में रहकर ही आप कुछ सच का अनुभव कर सकते है. जो शांति घटित होती है उसे देख सकते है. आप बंद आँखों से वो भी देख सकते है जो आज तक खुली आँखों से साफ-साफ नहीं देखा हो. नहीं जाना हो. ध्यान एक अविस्मरनीय घटना है, अगर एक बार आपको इस ध्यान में शांति कि झलक मिल गयी, तो फिर आपको किसी और शांति कि, या किसी और चीज़ को पाने की कोई जरुरत महसूस नहीं होगी.

अगर आप सब की जरुरत होगी तो इसकी विधि भी मैं लिखूंगा अगले लेख में.


इस पर आप अपनी प्रतिक्रिया जरुर दीजियेगा. …………….

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