तुझमें हर दिल बसता है, और शायद हर दिल में भी तू बसता है। मगर सब ढक गया है ।
कौन सुनेगा इसे? कौन समझेगा इसे? सिवाय तेरे, मगर तेरे समझने से ही क्या? तू तो सब कुछ जानता ही है, समझता भी है । जिसे समझना चाहिये वो हर दिल मर चुका है।
हर दिल में एक भावना होनी चाहिए, समर्पण की, तुझमें, मगर क्या करूँ? हर दिल यहाँ समर्पित हो चुका है दौलत में । क्या तू दौलत नही?
कौन कहे? किसे कहे? कहूँ अगर किसी को तो पागल घोषित हो जाऊँ।
हर दिल में एक चाह है- तुझे पाने की, मगर पाते कहाँ है? किसको समय है? किसे फुर्सत है, दौलत के पीछे दौड लगाने से। कोई मजदूर है, कोई मजबूर है, कोई भूखा है कोई नंगा । सब परेशान है मगर जानते नही क्यों परेशान है?
एक छोटी-सी झलकियाँ देखी थी, किसे है ये पता, अगर पता भी कराऊँ तो आवारा कहलाऊँ, उसे किसी ने नही देखा, अरे तुमने खोजा ही कहाँ था?
सुनी है मैंने एक चीख, एक पुकार इंसान की। मगर इंसान सुनकर भी मुँह मोड लेता है, वो अपनी इंसानियत खो चुका है, हैवानियत सर चढ्कर बोल रहा है। बचा लो अपने आप को, वरना कोई नही बचा पायेगा।
हर दिल एक खुबसूरत सपने संजोये है, खुबसूरत दिल ही नही कि सपने भी अपने हो सके। दिल तुम्हारे बिना सूना है, अधूरा है, बेकार है। बुला लो, बिठा लो, अकेले जाना है, एक साथी बना लो।
हर दिल को देखा है, दिखाई ही नही देता, कुछ धुन्धलका सा मगर वो देखता ही नही, कोई देखता है तो बोलता ही नही, कोई बोलता है तो पास ही नही आता, कोई आता है पर साथ नही चलता, कोई चलता है तो बस आधे सफर तक, फिर हम अकेले ही बच गए, बस एक तू है और कोई नही।
तूझमें जो समर्पित है वही बचेगा, सब डूब जायेगा, कोई देखेगा, कोई किसी को देख भी नही पायेगा। बचा लो अपने-आप को, इस तूफान से कोई नही बचेगा।
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