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आज मुझे बहुत दुःख हुआ जब किसी ने पूजा करने के लिए ढेर सारा फूल तोडा।
पूजा फूल से नहीं, प्रेम से होती है। फूल प्रेम का प्रतीक है। आप पूजा के लिए प्रेम के प्रतीक को क्यों, प्रेम को समर्पित कीजिये। पूजा कोई रस्म नहीं है, जिसे आप रोजाना दोहराए चले जा रहे है। इनसे न कुछ हुआ है, न होने वाला है। जब तक आप पूजा को प्रार्थना नहीं बना देते, जब तक इसमें आप खुद को समर्पित न कर देते है, पूजा जब तक दिल से, भाव से न करेंगे तब तक आपको शांति नहीं मिल सकती। पूजा का कोई फल नहीं मिल सकता। प्रार्थना दिल से हो चाहे वो कोई मंत्र हो या न हो, चाहे वो कोई गलत उच्चारण हो, कोई फर्क नहीं पड़ता।
प्रार्थना दिल से हो, भाव से हो, तो प्रार्थना हुई, अपने प्रार्थना में डूब जाइये, खो जाइये, भूल जाइये कि हम क्या गा रहे है, बस परमात्मा ही याद रहे तो पूजा हुई, तो प्रार्थना हुई, तभी शांति मिलेगी, तभी फल मिलेगा, पूजा के नाम पर फूल जैसे प्रेम को तोड़कर हिंसक काम न करे, प्रेम करें बस, प्रेम का ढोंग न करे। खिला हुआ फूल, फूल कि संतान है, इसे मत तोडिये, सोचिये कोई अगर आपकी संतान को तोड़े तो आपको कैसा लगेगा। फूल प्रकृति कि सौन्दर्यता को बढाने के लिए खिला है, फूल परमात्मा के लिए है। पूजा प्रेम से कीजिये।
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