प्रेम के सम्बन्ध मे सब कुछ कह देना मेरे लिये या किसी और के लिये मुश्क़िल ही नही नामुमकिन भी है, इसका कारण ये है कि प्रेम की परिभाषा, या प्रेम का अर्थ आज तक के जितने भी विद्वानों ने दी है वो अलग-अलग है । सबके अनुभव अलग-अलग है प्रेम के सम्बन्ध मे । एक छोटी सी कोशिश है मेरी यहाँ पर प्रेम के सम्बन्ध मे –
प्रेम इंसान का एक प्राकृतिक स्वभाव है, एक आदत है । लेकिन आज इंसान ने इस स्वभाव पर, इस आदत पर पर्दा डाल दिया है। आज लोग इतने भौतिकवादी हो गये है, कि प्रेम जैसे पवित्र स्वभाव उनके लिये बोझ होता जा रहा है क्योंकि वो जानते है कि प्रेम मे त्याग, बलिदान, और समर्पण जैसे दुख देने वाली परिस्थितियो से गुजरना पड सकता है। लोग दुखो से दूर होना चाह्ते है । दुखो से दूर होने के लिये उन्होने एक अच्छा सा उपाय ढूँढ लिया है वो सोचते है कि दुखो का उपाये सिर्फ धन होता है। और धन कमाने की आपा-धापी मे प्रेम कही खोता जा रहा है ।
समाज के कुछ शुभचिंतको, जिन्हे प्रेम के खोने का डर है वो लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने की सलाह देते है। सोचते है कि कुछ पूजा-प्रार्थनाएँ करने से ही प्रेम का दीया जल जाये। लेकिन…. सब व्यर्थ । याद रखे पूजा-पाठ करने से कभी प्रेम पैदा नही हो सकता….।
आज दुनिया का हर इंसान किसी न किसी धर्म से जुडा हुआ है, और दुनिया का हर एक धर्म इंसान को प्रेम से जीने की राह दिखाता है । आपस मे प्रेम बढाने को कहता है ।
धर्म के कृत्य प्रेम जगाकर परमात्मा तक पहुँचने के लिये है, परमात्मा को जानने के लिये है। लेकिन देखा ये जाता है लोग धर्म के कृत्य तो कर लेते है मगर उनमे कुछ बदलाव नही आ पाता है। समझने की बात ये है कि धर्म भी कहता है कि प्रेम ही पूजा है, प्रेम ही परमात्मा है फिर ये झूठे कृत्य क्यो?
जिसने कभी प्रेम का अनुभव नही किया वो इस संसार मे धर्म के किसी भी कृत्यो से कभी खुश या संतुष्ट नही हो सकता। अगर उसे ये लगता है कि वो खुश या संतुष्ट है तो समझ लो कि ये क्षणिक है ।
आज इस समाज मे प्रेम करने वाले को गालियाँ दी जाती है । और धर्म के कृत्यो को करने वाले को पूजा जाता है चाहे वो प्रेम जानता हो या न जानता हो कोई फर्क नही पडता । लोग कहते जरूर है कि प्रेम करो, लेकिन जब कोई किसी से प्रेम कर बैठता है तो लोग उसे समझाने पहुँच जाते है, अगर दोनो अलग-अलग जाति के हो तो फिर देखिये कि समाज मे उसके माँ-बाप की और उस समाज की किसी और समाज के सामने नाक कैसे कटने लगती है । फिर प्रेम को गालियाँ पडती है और रूढिवादी परम्पराओं का बोलबाला अपने चरम पर होता है । फिर प्रेम की नसीहत देने वाले कही दुबके दिखाई पडते है और सामाजिक परम्पराओ और रूढिवादी लोग हर तरफ कुछ-न-कुछ कहते दिखाई देते है। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि अंत मे प्रेमियो को सभी ऊँची नाक वाले की नाक बचाने के लिये आत्महत्या से प्रेम करना पडता है । क्या समाज ऐसा ही प्रेम चाहता है?
धर्म के कृत्यो को करके सब धार्मिक बन जाते है सिर्फ बाहर से, उनके अन्दर क्या चलता रहता है वो कभी उनके सच्चे दिल से पूछिये तब ही पता चलेगा । धार्मिक बन कर चिल्लाऐंगे कि प्रेम ही पूजा है, प्रेम ही ईश्वर है । और जब प्रेम करो तो उनकी नाक कटने लगती है । पता नही क्या चाहते है ऐसे लोग …। प्रेम का नाम जुबान पर आते ही उनके अन्दर गन्दे विचारो के चित्रण होने शुरु हो जाते है।
जिसने भी प्रेम किया, उसे पूजा करने की कोई जरूरत नही, उसने ईश्वर को पा लिया। सच कहा है कि जिसने प्रेम का एहसास किया है उसने ईश्वर का एहसास कर लिया । उसे किसी दूसरे झूठे और रूढिवादी कृत्यो को करने की कोई जरूरत नही।
आप सभी पाठको से मेरा सवाल है कि – आज के समाज मे जो प्रेम के नाम पर झूठे ढकोसले किये जाते है उनसे आप कितना सहमत है ?
प्रेम के और भी दूसरे रूप हम अपने अगले लेख मे प्रस्तुत करेंगे ………।
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