आज हमने सोचा कि आपलोगों को कुछ ऐसी बाते बताऊँ जो मैने प्रेम से सम्बन्धित कुछ महसूस किया या आस-पास होते हुये देखा।
कहने से पहले एक सवाल- मैने जहाँ भी देखा या सुना धार्मिक सत्संग, प्रवचन, या कथा चाहे वो रामायण, महाभारत या गीता की हो सबमे प्रेम का ही पाठ है। सभी वेद, उपनिषद प्रेम की ही बाते करते है। जितनी मात्रा मे प्रेम की चर्चा होती है प्रेम उतना ही कम होता दिखाई देता है क्यो? चारो तरफ प्रेम की बाते है लेकिन प्रेम करना हो तो छुप-छुप के मिलना पडता है प्रेमियो को । समाज की यातनाएँ सहनी पड्ती है प्रेमियो को। ऐसा क्यों होता है आज तक मेरी समझ मे ये नही आ रहा है। क्या आप इसमे मेरी मदद करेंगे?
मै एक ऐसा इंसान हूँ जो कोई भी काम पूरे दिल से करता हूँ या नही करता हूँ । ये ठीक है या नही मुझे पता नही, लेकिन मुझे संतुष्टि मिलती है बस इसलिय ऐसा करता हूँ। इस संसार मे मुझे दो चीज अच्छी लगी है –
1- दिल
2- प्रेम
दिल इसलिय कि ये सच्चा होता है हर बात का एहसास यह सच्चे रूप मे कराता है। यह इतना सच्चा होता है कि अगर कोई गलत काम करने की कोशिश करता है तो दिल से आवाज आती है न करने की, कुछ लोग इसे समझ पाते है और कुछ नही समझ पाते। कुछ लोग तो समझ कर भी दिल की बात को अनसूना कर देते है। सच कहूँ तो जो दिल की सुन कर काम करते है वो दुखी कम होते है । दिल की सुनने के सम्बन्ध मे एक बात और है कि कभी कभी दिल से दो तरह की आवाजे आती है, तो इन दो आवाजो मे सही कौन और गलत कौन हो सकता है, इसे परखना बहुत जरूरी होता है। अन्यथा हो सकता है कि दिल की सुनकर भी लोग गलत रास्ते पर जा सकते है। ध्यान वो विधि है जिससे हम ये परखने की समस्या हल कर सकते है।
प्रेम इसलिये कि इससे जीवन का आभास होता है। अगर प्रेम न हो तो ऐसा लगता है कि हम जीये ही नही। हम व्यर्थ ही सांसे गिन रहे है। प्रेम से जो हमें आनन्द मिला है उसकी व्याख्या हम किसी भी शब्दो द्वारा करने मे सक्षम नही है। एक असीम……. अनुभव, जो हमें कही और………… किसी दूसरी ही दुनिया मे ले जाती है। मै क्या बताऊँ कि प्रेम हमने कहाँ-कहाँ नही देखा – पशु, पक्षी, पेड, पौधे, प्रकृति और मनुष्यो मे भी देखा है। अगर मैं सबकी चर्चा करूँ तो पता नही कितना लम्बा लेख लिखना होगा, जो अभी शायद मुश्क़िल है। मैने बन्दर को अपने बच्चो और साथियो के बीच देखा है प्रेम करते हुये, गाय को देखा, फूलो मे देखा और भी ……………………………
जब मै ये सब देखता- तो बस पूछिये मत कि उस समय मै कहाँ खो जाता था। वो कहते है न कि सम्मोहित हो जाते है, सो मैं बिल्कुल सब कुछ भूल जाता था, मुझे चारो तरफ क्या हो रहा है कुछ भी दिखाई नही देता सिवाय उसके ….. । कभी कभी जब मैं किसी बच्चे को छूता या उससे कुछ बाते करता तो मैं उसमे खो जाता था। मुझे अपना होश ही नही रहता था बहुत देर तक । उस असीम अनुभव……….., आनन्द………………., व मिले सुख के बारे मे लिखने की हिम्मत नही है मुझमे। हाँ वो आनन्द इतना गहरा होता था कि मै उस गहरे आनन्द के सागर मे डूब जाता था। सच कहिये तो मुझे उस आनन्द के सागर से बाहर आने की जरा भी इच्छा नही होती थी। मुझे ऐसा लगता है वो आनन्द ही ईश्वरीय अनुभव है जो हमें दूसरी दुनिया की तरफ ले जाती है। जो हमें स्वर्गिक एहसास दिलाती है …….
लेकिन मैं आज देखता हूँ कि लोग आपस मे भाई-भाई मे प्यार से रहते तो है वो एक क्षणिक भर होता है । आपस मे प्यार से तभी तक बात करते है जब तक कि उनसे कोई मतलब होता है उनसे कुछ अपना काम निकलवाना होता है। अपना काम निकलते ही उनसे दूर भागने लगते है ……। लोगों मे ऐसा भाव क्यों आता जा रहा है? धर्मो के इतने प्रेम प्रचार से भी इस मनुष्य पर कोई प्रभाव नही पड रहा है क्यो?
अनुभव और भी बहुत है, कुछ ऐसे अनुभव है जिनके लिये कोई शब्द नही है………… कुछ के लिये इतने सारे शब्द है कि लिखना कठिन है । फिलहाल इतना ही ……….. मुझे उम्मीद है आपलोग उपरोक्त कुछ प्रश्नो पर अपनी टिप्पणी करके मुझे कुछ सलाह/सुझाव देने की कृपा करेंगे ………………. धन्यवाद !
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments