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ग़ुनाह

BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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हो जाए अगर दिल से कोई गुनाह तो
क्या कीजिए फिर मांगे वो पनाह  तो ।

सौदाई जहाँ मे किससे पूछे राह कोई
हैरत नही गर हो जाये यहाँ बेराह तो |

अपने गुमां से हर कोई महदूद है वर्ना
क्या बुरा होगा गर चले सभी हमाह तो।

कैसे जाने पास रहते है अहल-ए-खिरद
जब काम ही न आये कभी नवाह तो ।

तोड कर दिल को वो खुश होते है
क्या कहूँ गर नाम देते , वो फराह तो ।

वाइज़ ही कर दे मुहाल जीना तो क्या हो
गर करे कोई मोहब्बत, बेपनाह तो ।

सहर से ही शहर मे तरस है दाने की
परिन्दे भी क्या करे, ढले जो पगाह तो ।

गुनाह – दोष , पनाह – शरण, सौदाई – व्यापारिक, हैरत – आश्चर्य, बेराह – दिशाहीन, गुमां – अहंकार, महदूद – बन्धन, हमाह – साथ साथ, अहल-ए-खिरद – ज्ञानी लोग , नवाह – पडोस ,  फराह – मनोरंजन, वाइज़ – धर्म-गुरू, सहर- सुबह, पगाह- साँझ

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