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ज़ख़्म

BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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Zakhami Dil
दिल की दीवारों पे किसी को ज़ख़्म न दो
एक ज़ख्म जिन्दगी का रुख़ बदल देती है ।


वक़्त भर देता है नासूर भी जिस्म के मगर
एक झोंका ही दिल-ए-ज़ख़्म को सबल देती है ।


हर डाल पर सैयाद है दिल के तीर लेकर
क़ैद पंछी पिंजड़े में लोगो को हज़ल देती है ।


जलाने बैठे है दीवाने दिल में आग लेकर
धुआँ दिल के जलने का हद-ए-नज़र देती है ।


जो अपने रक़्श से रौशन करती है महफिलें
मिटाकर खुद को वो सबके रात संवर देती है ।


पूछिये उन्हीं से हाल-ए-दिल क़फ़स-ए-उलफत का
औरों के लिए तो ये लफ़्ज़ बस ग़ज़ल देती है ।



हज़ल – तमाशा, मनोरंजन , रक़्श – नाच , क़फ़स – पिंजड़ा , उलफत – प्यार


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