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ढूँढता हूँ …. यहाँ-वहाँ

BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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ढ़ूँढ़ता हूँ खुद को मैं यहाँ-वहाँ
बिखर गया हूँ टूटकर जहाँ-तहाँ


चोट की है दिल पे उसने दोस्तों
बदन पे ज़ख्म है मगर जहाँ-तहाँ


किलकारियाँ थी जहाँ अतफ़ाल की
फैला है बेग़ुनाह सर जहाँ-तहाँ


राज है अब हर तरफ ज़ल्लाद का
आदमो ने की बसर जहाँ-तहाँ


मेरे मज़हबी जो नही काफिर है वो
शैतान ने ये दी ख़बर जहाँ-तहाँ


होश में आए है जब से बे-ज़बां
दिख रहा है कुछ असर जहाँ-तहाँ



-(भगवान बाबु)

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