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चुलबुल पांडे का दबंगई शासन (सच्ची घटना)

BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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देश मे फैले भ्रष्टाचार और शासन व्यवस्था की असफलता को देखकर सभी की निगाहें सीधे-सीधे देश के संविधान में बदलाव व नया कानून बनाने पर जाती है लेकिन अगर इसी कानून को पालन करने वाले प्रशासन की कार्यप्रणाली और उसके तौर-तरीको में सुधार किया जाता तो शायद कानून को बदलने की सोचने की भी जरूरत न पड़ती । कहीं-कहीं इसका उदाहरण देखने को मिल भी जाता है । पर हैरानी तो इस बात से होती है कि ऐसे उदाहरण के बावजूद भी कोई दूसरी प्रशासन व्यवस्था इसके सबक नही लेती अपितु अपने जमीर व कानून को अपने तुच्छ स्वार्थ की खातिर कौड़ी के भाव अत्याचारी व बलात्कारी के हवाले कर देते है।
कुछ क्रांतिकारी विचारधारा व ईमानदारी से कार्य करते हुए अधिकारी एक अच्छी मिसाल देते है जिनसे इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि बदलाव कानून मे नहीं बल्कि व्यव्स्था में होनी चाहिये। उन भ्रष्ट अधिकारियों मे होनी चाहिए जिनकी ईमानदारी किसी अत्याचारी व असामाजिक तत्वो के घर के दीये मे तेल की तरह जलने का काम करते हो।
पिछले 10 वर्षो की समस्या को मात्र 1 महीने की अपनी सुशासन से इस बिगड़े कस्बे को सुधार की पटरी पर लाने का श्रेय अगर जाता है तो सिर्फ चुलबुल पांडे को … चुलबुल पांडे ने ये साबित कर दिया है कि अगर प्रशासन चाहे तो उसकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नही हिल सकता है, अगर हिल भी रहा है तो उसमे प्रशासन की ही ढ़ील है, उसी की कमजोरी है। ऐसा करने मे चुलबुल पांडे का दबंगई कहे या ईमानदारी, कुछ भी हो एक आम जनता उसके यहाँ से तबादले न होने की दुआ कर रही है वही दूसरी तरफ इस समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो चुलबुल पांडे के दबंगई से तंग आकर उसके तबादले होने के लिए इधर-उधर आला अधिकारियों और नेताओं के यहाँ गुहार लगाता फिर रहा है।
ये कोई दबंग फिल्म के चुलबुल पांडे की बात नही बल्कि अपने कर्म से लोगो की जुबान पर उसके लिए चुलबुल पांडे की उपाधि पाए उस शख्श की बात है जिसका नाम सुनते ही अब छोटे-मोटे और बड़े गुंडे भी अपने कमरे मे ही आराम फरमाना ज्यादा मुनासिब समझते है।
ये कोई काल्पनिक कहानी नही बल्कि उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले के तहसील दादरी थाने मे आये CEO अनुज चौधरी का है। दादरी मे मै करीब 10 वर्षो से भी अधिक से रह रहा हूँ। दादरी, जहाँ के लोगो ने भारत के आजादी की लड़ाई मे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। और अब आम जनता को सताने मे भी बढ़-चढ़ हिस्सा ले रही थी। दिन-प्रतिदिन G.T.Road और दिल्ली नोएडा की तरफ से आने वाले रेलवे रोड पर लगने वाले जाम से त्रस्त जनता अपने घर से निकलते समय कई बार सोचती थी कि किधर से जाया जाए कि जाम न मिले। कितने आला अधिकारी और नेता आकर इस जाम को हटाने के गीत गा-गाकर अपनी-अपनी राजनीतिक फायदा उठा चुकी थी। रोड के किनारे के दुकानदारो ने रोड पर ही अपना सामान लगाकर बेचते थे, ठेली व सब्जी बेचने वाले सड़को को ही अपना घर समझ कर व्यापार चला रहे थे। अगर उन्हे थोड़ा इधर या उधर खिसकने के लिए कोई कहता तो क्रोधित होकर गाली बकना शुरु कर देता था। कम उम्र के बच्चों द्वारा चलाए जा रहे उल्टे-सीधे तरीको से ऑटो–रिक्शा की भरमार की वजह से आए दिन दुर्घटनाएँ होती थी। अपने-अपने गाँव के शेर कहे जाने वाले गुंडो द्वारा स्टंट मारते हुए बाईक चलाना व सड़को पर चलते हुए लोगो से अनावश्यक रूप से उलझ कर मार-पीट कर अपनी दादागीरी दिखाने जैसी घटनाओ से आम जनता परेशान होकर दादरी मे बसकर गलती करने का पश्चाताप करने लगे थे।
अचानक से आए दादरी मे नए CEO अनुज चौधरी उर्फ चुलबुल पांडे ने आखिर ऐसा क्या किया जिससे दादरी की सभी समस्याएँ धीरे-धीरे काबू मे आती दिखाई दे रही है। उसका अपना स्टाईल है काम करने का, जो किसी से डरता नही है, इसलिए तो लोगो ने उसका नाम चुलबुल पांडे रख दिया है, इसलिए तो लोगो ने उस पर भरोसा दिखाया है। कहा जाता है कि वह एक स्पोर्ट्स मैन था, वह कोई पुलिस मे भर्ती होने के लिए दौड़ नही लगाया था। कुछ भी हो एक आम जनता उसके यहाँ पर कम-से-कम 6 महीने तबादले न होने की दुआ कर रहा है।
इससे पहले भी यहाँ बहुत CEO आए, क्या उनके लिए कानून कोई दूसरा था ? क्या सभी CEO- नेताओ और अपने आला-अधिकारी की चापलूसी करते थे.? या जनता की समस्याओ मे बेकार में उलझना नही चाहते थे ? इससे पहले जितने भी CEO आए थे उनमे से किसी-किसी ने थोड़ी-बहुत कोशिश की मगर उन कोशिश का असर 1-2 दिन से ज्यादा नही दिखता था। आज इसी दादरी मे समस्या भागती हुई दिखाई दे रही है.. न कही पर जाम है.. न ठेली-सब्जी वालो और न ऑटो–रिक्शा वालो की दादागीरी है… और छुटके-मुटके गुंडे भी भागते हुए दिखाई दे रहे है… सभी के जुबान पर चुलबुल पांडे की तारीफ ही सुनाई दे रही है..
फिर सवाल ये उठता है कि
1. कोई भी अधिकारी अपने काम के प्रति ईमानदार क्यों नही है.?
2. क्या सच मे कानून मे इस भ्रष्टाचार को खत्म करने की ताकत नही है?
3. क्या ईमानदारी से काम करने के बावजूद भी कानून को बदलने की जरूरत पड़ेगी?
4. क्या जान-बूझकर कोई नेता या आला-अफसर जनता की परेशानियो पर ध्यान नही देता?
5. कब तक जनता भ्रष्टाचार और अत्याचार के चंगुल मे फँसी रहेगी?

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