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भारत में लोकशाही व्यवस्था होने के कारण सरकार या सरकार द्वारा चलाये जाने वाले पंजीकृत संस्थानों व अन्य किसी प्रकार के संगठनो द्वारा जनता हित में किए जाने वाले किसी भी प्रकार के छोटे-बड़े योजनाओं की दशा और दिशा के बारे मे यहाँ की जनता को जानने का पूरा-पूरा हक़ है । उन योजनाओं के लिए आने-जाने वाले सभी तरह के रकमों का ब्योरा सार्वजनिक होना चाहिये। लेकिन होता है इसके विपरीत, इसी ब्योरे को छुपाने व बदलने की कवायद में जो स्वार्थपरक जैसे घृणित कार्य किए जाते हैं, इन्हीं से भ्रष्टाचार का जन्म होता है। कभी-कभी तो जनता को अमुक योजनाओं के बारे में उसमें हुए भ्रष्टाचार व घोटाले से पता चलता है। और घोटाले हो जाने के बाद कोर्ट उस मामले को इस देश की सबसे बड़ी और भरोसेमन्द जाँच एजेंसी सीबीआई को सौंपती है। लेकिन क्या जरूरी है कि सीबीआई द्वारा की गई जाँच व दी गई जानकारी भरोसे के लायक ही हो। जैसा की पिछले कुछ मामलो में सीबीआई की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाये गए तो माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को बन्द पिंजड़े का तोता बताकर उसे आजाद करने की बात कही। लेकिन क्या आजाद तोते अपने कार्य के प्रति ईमानदार होंगे? इस पर कितना भरोसा किया जा सकता है, अगर वही सीबीआई अफसर रिश्वत लेते पकड़ा जाए?
घोटाले व भ्रष्टाचार के बाद सुप्रीम कोर्ट उन संस्थानों व महकमों में एक भ्रष्टाचार निरोधी तंत्र विकसित करने की सलाह देती है। और सम्भव है कि आने वाले कुछ समयों में एक कानून ऐसा भी बनाया जा सकता है कि हर महकमे में इस तरह के तंत्र को लागू किया जाना जरूरी हो जाए। जैसा कि अभी-अभी ताजा मामलों से स्पष्ट होता है जब माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई को ऐसे ही तंत्र विकसित करने के लिए फटकार लगाई, जब IPL में स्पॉट फिक्सिंग मामले में कुछ चहेते खिलाड़ियों व बॉलीवुड के चेहरे फँसते नजर आए। लेकिन मै उन माननीय सुप्रीम कोर्ट से ये पूछना चाहता हूँ कि क्या उस भ्रष्टाचार निरोधी तंत्र को चलाने वाले इंसान नही होंगे? अगर वो इंसान ही होंगे तो उनकी ईमानदारी पर कितना भरोसा किया जा सकता है? अगर लोग ईमानदार ही हो जाए तो फिर इस तंत्र की जरूरत ही क्यों पड़े? हाँ अगर इस तंत्र में इंसानों की जगह कोई मशीन बिठा दिया जाए तो सम्भव है कि वो सभी के साथ उचित फैसला करे। क्योंकि केवल मशीनों के पास ही अपनी ऐशो-आराम, सुख-सुविधा और जरूरत जैसे स्वार्थ के शब्द न होंगे और वो ऐसे घृणित कार्य को अंजाम न दे सकेगा।
कोई भी भ्रष्टाचार या घोटाला हो, चाहे वो किसी प्रधानमंत्री या किसी और बड़े मंत्रियों से लेकर छोटे-से—छोटे अफसरों द्वारा किया गया हो, सभी घोटालों के केन्द्र में वो कुछ चन्द रूपये से लेकर भारी-भरकम रूपये ही होते हैं जो अपने लिए ईकट्ठा करने की नीयत से हथियाए जाते है। माननीय सुप्रीम कोर्ट को एक ऐसी कमिटी गठित करनी चाहिए जो कमिटी इस बात पर कार्य करे कि कोई भी ये भ्रष्टाचार या किसी भी तरह का घोटाला क्यों करता है? वो कमिटी इस बात की तह तक जाए, उन कारणों का पता लगाए, तभी इसे रोकने का कोई उपाय ढ़ूँढ़ा जा सकता है।
क्योंकि बगैर बीमारी जाने किसी बीमार को दवा देकर आप उसे और बीमार ही बना सकते है। और आज ऐसा देखने को खूब मिल रहा है। जितने बलात्कारी पकड़ कर आप उसे सजा देते है उतने ही संख्या में ये वारदातें और बढ़्ती ही जाती है। जितने संख्या में आप घोटालेबाज को पकड़ते हैं उतनी ही ये और हर महकमें में दिन दूनी रात चौगूनी फलती-फूलती जा रही है।
ऐसे घृणित कार्यों में अगर सरकार और सरकार के वे बड़े-बड़े मंत्रियाँ, जो जनता की सेवा के लिए नियुक्त किये गये है, सेवा के नाम पर खुद ही मेवा खाने की फिराक़ में लगे रहते है तो फिर किसी और पर क्या भरोसा करना। उदाहरण के तौर पर देखे तो सभी पेट्रोलियम कम्पनियाँ अपना घाटा दिखाकर जनता पर अनावश्यक रूप से बोझ डालती गयी, और सरकार चुपचाप देखती रही। क्या किसी ने घाटे की वजह जानने की कोशिश की? जबकि सच्चाई ये है कि ये पेट्रोलियम कम्पनियाँ हर साल हजारो करोड़ रूपयों का शुद्ध मुनाफा कमाती है। क्या सरकार इन बातों से अंजान है? सभी आपस में हिस्सों की बन्दरबाँट करके मामले को अन्धेरी कोठरी में डाल कर जनता को गुमराह करके ठगते रहते है। क्या ये बातें सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में नही है? अगर नही है तो सुप्रीम कोर्ट ऐसी व्यवस्था लाये जिससे सभी योजनाएँ व उनके हिसाब-किताब तथा उनकी स्थिति उसके संज्ञान मे रहे, साथ ही साथ समय-समय पर इसकी सही जाँच भी सुनिश्चित हो। सरकार के कामों मे हमारा कोई हस्तक्षेप नहीं अगर ये कहकर सुप्रीम कोर्ट अपना पल्ला झाड़्ती है तो क्या सुप्रीम कोर्ट का काम सिर्फ गुनाहगारों को सबूतों के अभाव में उसे बरी करना और बेगुनाहों को झूठे सबूतों के आधार पर सजा देना है?
एक वकील जिसका काम न्याय-व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए न्यायपालिका को सहयोग करना होता है। लेकिन कौन ऐसा वकील है जो ये नही चाहता है कि उसका मुवक्किल कोर्ट से बाईज्जत बरी न हो जाए। जबकि उसे अच्छी तरह मालूम होता है कि मेरा मुवक्किल अपराधी है। और इसके लिए वह अपने सभी दांव-पेंच खेलता है। जिसका परिणाम है कि न्यायालयों मे हजारों मामले सालों से लम्बित है। परिणाम की आस मे लोग अपनी उम्र तक हार जाते है, मगर परिणाम नही आता।
आज इस दुनिया का हर एक शय खरीदने और बेचने में शामिल हो गया है। चारो तरफ व्यवसाय के झंडे लहरा रहे है। यहाँ तक कि जनता की जरूरतें, जनता की भावनाएँ सब बिकने लगी है इन मंत्रियों, अमीरजादो और बड़े-बड़े व्यवसायियों के बाजार में। इन घोटालेबाज व भ्रष्टाचारियों को पकड़ने और सजा देने के झमेले में पड़ने से अच्छा है कि इसे भी एक नये व्यवसाय का नाम देकर इस पर भी टैक्स निर्धारित कर दे। फिर आये दिन होने वाले घोटाले और भ्रष्टाचार से इस देश को मुक्ति मिल जाएगी। और गरीब, दलित, बेसहारा और मेहनत मजदूरी करने वाले लोगो को देखते ही गोली मार देने का आदेश देना चाहिए जिससे कि सरकार को इसके बारे मे सोचने के लिए दिमाग न खर्च करना पड़े। तिल-तिल कर मरने से अच्छा लोग एक बार में ही मर जाना पसन्द करेंगे..
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