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ग़ज़ल

BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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bhagwanbabu

शोखियाँ शबाब में वो पास में ईक रात है
आईने में ख्वाब जैसी बहकी मुलाक़ात है
.
बेक़रारी दिन भर रही रात चाँदनी में कटी
होती रही उलफ़त ही में ऐसी वाक़्यात है
.
भोलेपन मे सो गयी सर रखके शानो पे
क़ैद इसको कैसे करे ये जो लम्हात है
.
भूख-प्यास कुछ नही लगा कैसा रोग है
कहते है प्यार मे तो अभी शुरुआत है
.
रस्म-ए-आने-जाने मे जी सका न मर्जी के
बिना दास्तान-ए-शौक़ कैसी ये हयात है
.
पाया खोया क्या हमने एक-दूसरे से
मोहब्बत मे ये सब किस्से वाहियात है
.
क़िस्सा आँसुओं का सबब उसने जो बताया
किसपे भरोसा करे जैसे अब हालात है
.
लुट गया वो यहाँ अपने ही ईक दोस्त से
दोस्ती मे अक्सर यहाँ होती वारदात है
.
झूठे फ़रेबी कौन है पहचान जो करा दे
जिन्दगी में वक़्त वो भी आना जरूरियात है
.
कह दो ग़म-ए-हयात से दिल्लगी वो न करे
ज़ख्म जिंदा है अभी जो उसने दी सौग़ात है
.
जिन्दगी की बेवफाई से नही शिक़वा कोई
मैंने एक बना लिया साथी वो वफ़ात है
.
वफ़ात – मौत,

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