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महिषासुर समाज के लिए चाहिए ‘दुर्गा’

BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा था “यदा यदा हि धर्मस्य…” इस कथन के अर्थ आज बदले-बदले नज़र आ रहे है। आज का अर्थ ये बन पड़ा है कि जो जो इस समाज और धर्म की रक्षा करने के लिए आगे बढ़ेगा उसके हाथ-पाँव काट दिए जाऐंगे। बदनाम कर कटघरे में खड़े कर दिए जाऐंगे।
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पद के बलबूते ईमानदार अधिकारियों को अपने रास्ते से हटाकर आपराधिक कृत्य को शह देने का चलन आज इस देश मे हर तरफ फलीभूत हो रहा है। सुना था … कानून के हाथ लम्बे होते है । होते होंगे … पर इतने भी लम्बे नही होने चाहिए कि अपने ही बगल में हो रहे दुष्कृत्य को पकड़ न सके। और ऐसे लम्बे भी किस काम के कि जब तक अपराधी पकड़ में आए तब तक वो अपने कृत्य को अंजाम तक पहुँचा ही देता है । फिर कानून क्या.. सिर्फ फैसला सुनाने के लिए ही बना है। क्या कानून में अपराध को रोकने की क्षमता नहीं। ऐसे कानून किसके लिए है जिससे एक अपराधी डरने की बात तो दूर सिर्फ खरीद-फरोख्त की चीज समझता हो।
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और जिस कानून को बनाने वाले लोग संसद में बैठकर संसद की गरिमा बढ़ा रहे है उनमें से अधिकतर लोग पहले से ही दागी है जिनमें कुछ लोगों पर जघन्य आपराधिक केस चल रहे है ऐसे लोग अगर कानून बनायेंगे तो क्या उस कानून में वो शक्ति होगी जिससे समाज के अपराध को रोका जा सके। जहाँ संसद के नेता भी खरीद-बिक्री की चीज बन गये हो तो संसद को इस देश का व्यापार शाला कहने में कोई अतिश्योक्ति नही होनी चाहिए.. जहाँ सिर्फ जनता की भावनाओ और जरूरतों की बलि देकर अपने-अपने स्वार्थों का व्यापार चलाया जाता हो।
आज इस केस में कुछ नया नही है जब किसी की ईमानदारी पर कैंची चली हो। अगर पीछे मुड़ कर देखा जाए तो ऐसे बहुत से ईमानदार अफसर मिल जायेंगे जो इन गुंडा नेताओं के हत्थे चढ़ते रहे है। ईमानदारी दिखाने वाले अफसरों का या तो तबादला किया जाता रहा है या निलंबित। कुल मिलाकर बात ऐसी है कि इस देश में उन्ही लोगो की शाखों में कोपलें आती है, फलते-फूलते है जो बेईमानी के पानी पीते, भ्रष्टाचार का खाना कर दुराचार की हवा फैलाते हो।
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दुर्गा शक्ति नागवार के केस में नरेन्द्र भाटी ने जिस मस्जिद के दीवार गिराने की दलील देकर निलम्बित करने की बात की है… अगर थोड़ी देर के लिए ये मान भी लिया जाए कि ये सच होगा .. फिर सवाल ये उठता है कि अगर वो मस्जिद की जगह किसी मन्दिर की दीवार होती तो क्या फिर भी दुर्गा को निलम्बन का शिकार होना पड़ता? एक नेता अनपढ़ हो सकता है लेकिन एक आईएएस अधिकारी इतना शिक्षित जरूर होता है कि वो नही चाहेगा कि किसी धार्मिक स्थल को ठेस पहुँचाकर किसी साम्प्रदायिक दंगे को जानबूझ कर न्योता दे.. । और ये जगजाहिर है कि साम्प्रदायिक दंगे हमेशा नेताओ की जेब में होते है और नेता इसका फायदा समय-समय पर उठाते रहे है । जैसा कि अब चुनाव आने से पहले मुस्लिमों के वोट बैंक की राजनीति करने की कोशिश की जा रही है ।
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दुर्गा की शक्ति आज चाहिए
इस समाज महिषासुर को
नोंच खाने को बैठा है जो
आबरू लीलने आतुर को
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फल-फूल रहा है उनका सौदा
धर्म-समाज बँटवारे को
नही चाहिए ऐसा शासन
जो रख न सके रखवाले को
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मर्दानी ताकत सो गयी सबकी
असुरों के खिलाफ बोलने को
अच्छी लगती यहाँ है सबको
कमाई खून की जोड़ने को
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धन से शासन खरीदते है फिर
क्रूरता दिखलाते अबलाओं को
दुष्कृत्य करने में थकते नही वो
बलात करते गरीब बालाओ को
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कानून के सौदागर बन बैठे
खरीद-फरोख्त वो करने को
जनता गरीब है मर रही
कोठी उनकी भरने को
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आगे सबको आना होगा
मार भगाने ऐसे नेताओं को
इनके ज़ुल्म अब नही सहेंगे
चाहे बलि देना पड़े वीराओं को
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जब तक दुर्गा जैसे ईमानदार अधिकारियों को उनकी ईमानदारी का ईनाम निलम्बन के रूप में इसी तरह मिलता रहा तब तक इस समाज का उत्थान सम्भव नहीं । ऐसी अधिकारी इस देश व समाज के विकास के रास्ते को गति देने वाले है । चुँकि नेताओं को ये डर है कि अगर ऐसे अधिकारी माफिआयों को खोदते रहे तो एक दिन उनका भी गिरेबान टटोला जायेगा जहाँ उनका फँसना तय है । ऐसे नेताओं की भरमार है यहाँ .. इसलिए यहाँ से ऐसे कानून व अधिकारियों की सम्भावना व्यक्त नहीं जा सकती जहाँ से इस समाज के हित में कुछ कार्य सर्वसम्मति से चल सके।
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हर गली में आज ऐसे दुर्गा की जरूरत है जो हर गली के महिषासुर को खत्म कर सके। समाज को साफ कर सके। विकास को गति प्रदान कर सके..
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जय हिन्द !!!

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