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मै एक हिन्दू हूँ, पर तिल भर भी मेरी इच्छा नही कि मुझे दुनिया हिन्दू होने की वजह से जाने बल्कि एक अच्छे इंसान होने की वजह से जाने। ये विश्व हिन्दू परिषद नही बल्कि विश्व हिन्दू पॉलिटिक्स है जो राम के नाम पर हिन्दुओ से राजनीति कर रही है।
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राम शब्द बड़ा ही प्यारा है और उतने ही प्यारे इनके चरित्र को भी दर्शाया गया है शास्त्रों में। लेकिन आज रामभक्त को देखकर लगता ही नही कि कभी ये राम से परिचित भी हो। इन्हे अगर रावण-भक्त कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। 84 कोसी परिक्रमा पर जो हंगामा हो रहा है, उस हंगामे पर नेता संतो की भाषा बोल रहे है और संत नेताओ की भाषा। एक नेता कह रहे थे कि अभी परिक्रमा का समय ही नही था क्योंकि ये समय अभी राम के आराम का है। और संत कह रहे है कि मै कोर्ट को चुनौती देता हूँ, कोर्ट को परिक्रमा के कानून की कोई जानकारी नहीं, कानून से सम्बन्धित कोई भी चर्चा कर सकती है मुझसे। हंसी आती है ऐसे रामभक्तो पर और संतो पर। अगर राम से भी पूछा जाता कि वो किस जाति है तो शायद वो भी बता नही पाते। लेकिन आज सिर्फ जय श्री राम बोल कर लोग हिन्दू और राम भक्त बनते फिर रहे है। क्योंकि ये जानकारी वही रखते है जिन्हे राजनीति करनी है अपने जाति पर, अपने धर्म पर, देश पर या देश की जनता पर।
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उत्तर प्रदेश सरकार भी इस 84 कोसी परिक्रमा को हौवा बनाने में कोई कसर नही छोड़ रही है। अगर ये संत परिक्रमा कर ही लेते तो क्या हो जाता। कौन सी आफत आ जाती, कौन सा पहाड़ टूट पड़ता, कौन सी शासन व्यवस्था भंग हो जाती । शासन व्यवस्था भंग तो अब हो गयी है दंगे की सम्भावना तो अब बढ़ गयी है। और वैसे भी उत्तर प्रदेश की शासन-व्यवस्था कब अच्छी थी कि आज सरकार को डर सताने लगा था। परिक्रमा कर ही लेते तो कुछ नही बिगड़ता, पर अब साम्प्रदायिक होने का खतरा है। अपने ही रूढ़िवादी जनता या दूसरे दल द्वारा राजनीति करने से ये सरकार इतना डर गयी कि कई जिलों को छावनी मे तब्दील कर दिया गया। और इसमे सरकार की हार ही दिखाई दे रही है। क्योंकि जीत तो तब होती जब इस परिक्रमा को बिना किसी दंगे के चुपचाप पूरा करा लिया जाता। और इसमें उतनी प्रशासन व्यवस्था भी नहीं करनी पड़ती। लेकिन यहाँ सरकार ने सिर्फ बच्चों की तरह अपनी जिद के आगे घुटने टेककर सभी दलों को अपनी ताकत दिखाने की कोशिश कर रही है।
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आज न संत संत दिखाई पड़ रहे है और न नेता नेता। सबको मालूम है कि आज संत धर्म के नाम पर क्या-क्या कर रहे है और इनसे इस समाज पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। संतों को क्या लग रहा है कि वो 84 कोसी परिक्रमा करके राम-मन्दिर बनाने के लिये लोगो को जागरूक कर लेते और राम-मन्दिर बन जाता। संत ये क्यों नही सोचते कि राम-मन्दिर बना कर ही वो क्या कर लेते। क्या भारत में मन्दिरों की कमी है? भारत में पहले से ही हजारो मन्दिर है जो सिर्फ जनता को लूटने व बेवकूफ बनाने के लिए इस्तेमाल होते है, एक और मन्दिर बनाकर संत अपना और अपने नेताओ के पेट को और मोटा करना चाहते है। अगर ये सच में संत होते तो जनता और समाज को बनाने के बारे मे कुछ सोचते । लेकिन आज हर संत एक नेता बनने की कोशिश में है और हर नेता धर्म के नाम पर जनता को लूटने की कोशिश में।
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संत राम का अर्थ क्यों भूल जाते है? क्या परिक्रमा करके राम को मनाना चाह रहे थे? क्या वो भूल गये है कि राम हर जगह है और राम ने कब कहा कि मेरी या मेरे लिए परिक्रमा करो? अरे जहाँ रम गये, जिसमें रम गये वहीं राम है। मन्दिर किसके लिए और क्यों बना रहे हो? मन्दिर तो तुम सिर्फ अपने स्वार्थ और व्यापार के लिए बनाने की कोशिश कर रहे हो।
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अगर कोई हिन्दू का झंडा लेकर भीड़ इकट्ठी करता है तभी तो किसी दूसरी जाति को भी अपना झंडा उठाना पड़ता है। अगर सभी जातिवाद को छोड़कर इंसानवाद को लेकर जीना शुरू करे तो क्या जरूरत होगी अपनी जाति के नाम पर शोर मचाने की। मुझे तो ये लगता है कि राम और अल्लाह सिर्फ आपसी दंगे की वजह है, इस राम और अल्लाह के चक्कड़ में किसी को पड़ना ही नही चाहिये।
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कुछ हिन्दू संगठनो को आज हिन्दू गर्त में जाती हुई दिखाई देने लगी है, इसका वजह खुद वो संगठन है जो इस पर भी राजनीति करने लगी है। और ये सब जानते है कि राजनीति जिस पर हुई वो गर्त में ही जाता है उसके लिए और कोई जगह नही उदाहरण के लिए देश की तत्कालीन स्थिति ।
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