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आज भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव पूरे धूम-धाम से मनाया जा रहा है। श्री कृष्ण को “भगवान” का दर्जा देकर मन्दिर के तख्त पर बिठाकर ये देश लगभग 5000 सालों से पूजता आ रहा है। परंतु आज तक इस देश के रग का कोई कोना कृष्णमय नहीं हुआ। और तत्कालीन देश की परिस्थिति को कृष्ण के विचारों की सख्त जरूरत है।
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कृष्ण को “भगवान” का दर्जा देकर मन्दिर के तख्तो-ताउस पर बिठाना इस देश की सबसे बड़ी भूल थी लेकिन विडम्बना ये भी है कि किसी को “भगवान” बना कर पूजना, इस देश की फितरत में हमेशा से रहा है। ये देश जल्द ही कहीं भी, कभी भी किसी के आगे बिना सोचे-समझे झुक जाता है। कृष्ण ने तब भी एक तरीका दिया था जीने का, जीकर दिखलाया था। और आज के परिपेक्ष्य में भी कृष्ण के विचार उत्तम है, जिसकी जरूरत है एक इंसान को, परिवार को, समाज को और देश को। कृष्ण अपने समय से लेकर आजतक इस देश के जगतगुरू है, जिनके विचारों को अपने आचरण में, अपने व्यवहार में लाने की जरूरत है न कि उनके नाम का व्रत या पूजा कर एक नये ढ़ोंग करने की।
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आज कृष्ण का जन्मोत्सव है, लोग भजन गा रहे है, व्रत रखा है सभी ने, उपवास किया है सबने, मनमोहक झाँकियाँ निकाली जा रही है, 12 बजे का इंतजार कर रहे है, फिर प्रसाद ग्रहण करेंगे, प्रसाद वितरण भी होगा, हर्षोल्लास से सभी झूम उठेंगे। सुनने में बड़ा ही अच्छा लगता है, यहाँ आस्था और धर्म रग-रग में कूट-कूट कर भरा हुआ प्रतीत होता है। ऐसा लगता है यहाँ सब कृष्णमय हो चुके है । लेकिन ये सब बस एक दिन, कल से फिर सब अपने-अपने रोजमर्रा की जिन्दगी में उलझ जायेंगे। क्या कृष्ण साल में सिर्फ एक दिन याद करने के लिए है…. ? नहीं, आज कृष्ण को जीने की जरूरत है पल-पल। हर सांस में कृष्ण को भरने की जरूरत है। कृष्ण को “जगतगुरु” मानकर उनके आदर्शों पर चलने की आवश्यकता है, न कि एक दिन याद करके धर्म के रस्मों को निभाने की।
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जीवन के तथ्य और सत्य को समझने के लिए कृष्ण को समझना अति आवश्यक है। सभी धर्मों के रस्म तथ्यों पर पर्दा डालकर आमजन को रस्मों में उलझा देता है वही कृष्ण का धर्म, तथ्यों और रस्मों को ठीक उसी तरह अलग-अलग कर देता है जैसे अन्धेरे में दीपक की रोशनी, जिससे ये फर्क करना आसान हो जाता है कि कहाँ उजाला है और कहाँ अन्धेरा। कृष्ण रोशनी हैं धर्म के रस्मों के अन्धेरे में। लेकिन हमारी फितरत रस्मों को ढ़ोने में रही है न कि तथ्य और सत्य को जानने की। और इसी फितरत का फायदा आज के ढ़ोंगी धर्मगुरु खूब उठा रहे है। आज के धर्मगुरु अपना व्यापार चलाने के लिए उस जगतगुरु को भगवान बनाकर सत्य को ढँकने के लिए पूजा और व्रत का जो रस्म दिया वो सभी को खूब भाई । जिसका परिणाम यह हुआ कि सत्य कहीं खो गया और रस्म चारों तरफ खूब फलीभूत हो रहा है।
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