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ढ़ोंगी बाबाओं का जाल

BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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जहाँ हजारों आस्था और श्रद्धा जब किसी एक व्यक्ति विशेष या वस्तु पर टिक जाये फिर वो व्यक्ति या वस्तु साधारण नहीं रहता। ये आस्थाएँ उसे ईश्वर तक का दर्जा दिला देती है। और ऐसी घटनाएँ भारत जैसे देश में होना एक आम बात है। ये उपलब्धि कभी-कभी किसी को अचानक से मिल जाती है और कभी-कभी किसी को इसके लिए बहुत प्रयत्न करना पड़ता है। और जब ये उपलब्धि किसी प्रयत्न द्वारा हासिल की जाती है तो फिर समय बीतने के साथ-साथ कभी-कभी ये अहंकार का रूप भी ले लेती है जो उसके विनाश का कारण बन सकती है।
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भारत में तथाकथित धर्मगुरुओं, प्रवचनकर्ताओं, कथावाचकों को इतना आदर और सम्मान दिया जाता है कि हर व्यक्ति की चाहत इनके फलते-फूलते व्यापार को देखकर इनके जैसे बनने की हो जाती है। हर कोई सोचने लगता है कि टेलीविजन के किसी चैनल पर उसका भी एक प्रोग्राम आये, लोग सुने और भक्तों की संख्या में इजाफा हो और कमाई दिन-दूनी रात चौगूनी बढ़े।
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काम, क्रोध, लोभ, मोह और झूठ ये सभी मनुष्य के अवगुण नहीं, बल्कि गुण है, इन्हीं गुणों से मनुष्यों को पहचाना जाता है। इन्हीं गुणों से नर और नारायण में फर्क किया जाता है। कोई भी मनुष्य़ इसे छोड़ ही नही सकता। लेकिन यहाँ सभी धर्मगुरुओं की यही सलाह रहती है कि ये सभी उसके अवगुण है, बाधा है, बिना इसे छोड़े परमात्मा को नहीं पाया जा सकता। इतना सुनकर भक्तों को लगता है कि उनके धर्मगुरु इन अवगुणों पर विजय पा चुके है, परमात्मा को भी प्राप्त कर चुके है। लेकिन वो ये भूल जाते है कि वो भी एक मनुष्य ही है। और भक्तों के दिलों पर आघात तब पहुँचता है जब उन्हें अपने धर्मगुरुओं के परमात्मा का झूठा चोगा पहने होने का पोल खुलते देखता है।
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मुझे दया उन धर्मगुरुओं के प्रति बिल्कुल भी नही है जिनके पोल खुलने पर उन्हें सजा या यातनाएँ दी जाऐंगी, बल्कि उन हजारों, लाखो भक्तों के प्रति है जिन्होनें अपना जीवन अपने गुरु को समर्पित कर दिया था, परमात्मा समझकर सबकुछ सौंप दिया था, पूजने लगा था, लेकिन जब आज उसे ये पता चलता है कि उनके धर्मगुरु कोई परमात्मा नही बल्कि एक साधारण इंसान है जिसने सिर्फ एक भगवा वस्त्र धारण कर लिया है, जिसने शास्त्रों को पढ़ना सीख लिया है, जिसने अपने मनमोहक बातों से सबको आकर्षित करना सीख लिया है बस, फिर इसी की आड़ में उसने हम सबकी भावनाओं के साथ व्यापार किया है। मुझे उन सभी भक्तों के मानसिक विक्षिप्तता का भय है।
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मुझे समझ में ये नही आता कि कोई किसी धर्मगुरु की तलाश क्यों करता है? मेरी सलाह आज उन सभी भक्तों से है जो गुरु की तलाश में है, या किसी गुरु के बताये कर्म-कांडो के पीछे भाग रहा है । आज वक्त अपने धर्मगुरु को बाहर तलाश करने के लिए बाहर जाने की नही, बल्कि अपने ही अन्दर सुषुप्तावस्था में सो रहे गुरु को जगाने की है। बाहर आप सिर्फ व्यापार तलाश सकते हो, गुरु नहीं। बाहर हर तरफ झूठ है, धोखा है, रोटी की भूख है, जिसकी आड़ में परमात्मा के नाम को बड़ी आसानी से खरीदा और बेचा जाता है। आप जिन परमात्मा के नाम से थर-थर काँपतें दिखाई देते है। वहीं आपके धर्मगुरु खुद को परमात्मा बताने के लिए कई चमत्कारों का उदाहरण देते है जिनकी वजह से आप उनके जाल मे फँस जाते है। आज आपको किसी के जाल मे फँसने की कोई जरूरत नही बल्कि खुद को जानने की है, पहचानने की है। आपको आपका गुरु वही मिल जायेगा। आपको गुरु के लिए किसी दूसरे पर भरोसा करने की नही अपितु खुद पर करने की है। खुद पर यकीन करना सीखिये। और अपने मनुष्य गुणों का, जिसे आप छोड़ना चाहते है, उसके लिए कोई रस्म या कर्म-कांड करने की जरूरत नही, बल्कि आपको इतना करना है कि अपना ध्यान दूसरी तरफ लगाना है, अपने अवगुणों की ऊर्जा को रूपांतरित करना है, इसकी दिशा को बदल देना है। कुछ ही दिनों में आपको अपने-आपमें एक बदलाव नजर आयेगा जो आपकी जिन्दगी को बदल देगा। आपको किसी गुरु की कोई जरूरत नहीं, किसी गुरु के चक्कर में पड़कर अपना अमूल्य जीवन नष्ट न करें। परमात्मा से डरें नहीं, प्रेम करें। परमात्मा को किसी रस्म, कर्म-कांड या पूजा की जरूरत नही। इसलिये इसमे अपना समय भी नष्ट न करें।

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