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अपने कार्य में मेहनत, लगन और संकल्प शक्ति के साथ मंजिल बहुत लोग पा लेते है। लेकिन उस मंजिल तक पहुँचने के बाद धैर्य, संयम और शालीनता का मानसिक संतुलन बनाये हर कोई नही रख पाते। लेकिन सचिन तेन्दुलकर उन अपवादों में से एक है जिन्होनें अपने करियर के हर क्षेत्र में विश्व रिकार्ड बनाकर “क्रिकेट के भगवान” के नाम से पुकारे जाने के बाद भी उनके चेहरे पर वो मासूमियत और शालीनता बरकरार है।
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ऐसा नहीं है कि सचिन को अपने करियर के दौर में बुरे वक्त से गुजरना न पड़ा हो, लेकिन सचिन ने उन हालातों में भी अपना धैर्य और संयम बरकरार रखते हुए अपने आलोचकों को अपने बल्ले से ही जबाव दिया न कि जुबान से। इससे बिल्कुल साफ हो जाता है कि सचिन, क्रिकेटर के साथ-साथ एक बहुत ही अच्छे इंसान भी है। उनके खेल से ये साफ-साफ पता चलता है कि वो हमेशा अच्छे खेल को तरजीह देते है न कि जीत और हार को। मैदान में अपनी खेल भावना को दिखाने में उनका कोई सानी नहीं। जबकि बहुत ऐसे खिलाड़ी है जो सिर्फ जीत के लिए ही खेलते है और इसके लिए वो अशिष्टता व अभद्रता का व्यवहार करने से भी नहीं चूकते। लेकिन सचिन इन सब बातों से बिल्कुल दूर, खेल भावना को समर्पित यह खिलाड़ी अपने इन्हीं गुणों से महान कहा जाता है।
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अपने जीवन में जरा भी असफलता लोगो को विचलित कर देती है। बहुत ऐसे लोग अपने रास्तों से भटक जाते है, उन लोगों को धैर्य, संयम और अपने कार्य के प्रति समर्पण की प्रेरणा सचिन जैसे खिलाड़ी और इंसान से लेनी चाहिए, जिसके चेहरे पर न तो बुरे दौर के परेशानियों की झुर्रियाँ कभी दिखी और न ही आज तमाम विश्व रिकार्डों व ख्यातियों को पाने का जरा भी बोझ दिखता। हर समय अपने खेल के प्रति समर्पित यह खिलाड़ी अगर आज अपने रिटायर्मेंट की घोषणा करता है तो किसी और दुःख भले ही हो या न हो लेकिन क्रिकेट और क्रिकेट के मैदान को जरूर होगा जो सिर्फ क्रिकेट के लिए ही खेलता था, उसकी आँखों में एक बूँद आँसू और एक इंतजार जरूर होगा कि फिर कोई एक नया सचिन उसे कब मिलेगा जो ईमानदारी से सिर्फ उसी के लिए खेलेगा?
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