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जेल का खेल

BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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ऐसा क्यों होता है कि कोई बड़ा नेता, मंत्री या अभिनेता किसी घोटाले या मामले में जेल जाते ही बीमार हो जाते है और उन्हें बड़ी आसानी से बाहर की हवा खाने के लिए मोहलत मिल जाती है। अमर सिंह हों या चौटाला जी, और भी बहुत लोग है इस लाईन में, लेकिन फिलहाल 1993 के मुम्बई बम धमाके मामले में अवैध रूप से हथियार रखने के जुर्म में दोषी संजय दत्त भी बीमार होकर बाहर की हवा खा रहे है और उन्हें छुट्टी पे छुट्टी दी जा रही है, अब देखना ये है कि लालू जी कब बीमार होकर जेल से बाहर आते है। इतना तो तय है कि अपने दौलत और शाख के दम पर कोई भी अपना रूतबा कही भी दिखा लेता है, किसी को भी अपने जाल में फँसा सकता है। कानून हो या जनता।
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क्योंकि एक आम कैदी जेल में बीमार होकर मर जाए या आत्महत्या कर ले या कोई उसकी हत्या कर दे, घटना के बाद ही उसकी चर्चा एक-दो दिन होकर गुमनाम अन्धेरे में खो जाती है। और एक खास कैदी को जब भी जेल से बाहर की दुनिया देखनी होती है, वो बीमार हो जाते है और बाहर का लुत्फ उठाते है। क्या जेल के नियम आम कैदी के लिए अलग और खास के लिए अलग होता है..? क्या जेल में एक आम कैदी का इतना भी ख्याल नहीं रखा जाता कि उसकी हत्या ही कर दी जाए?
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क्या उन खास ओहदे वाले लोगो के इस तरह बीमार होकर बाहर घूमने की इजाजत देने सम्बन्धी कानून व आदेश पर कोई जाँच नही होनी चाहिए..? एक आम कैदी जेल में सड़ जाता है वही खास लोगो के लिए नए-नए नियम जनता को बताकर उन्हें बाहर घूमने के लिए छूट दे दिया जाता है जैसे कि आजकल संजय दत्त फरलो नियम के तहत बाहर घूम रहे है। अपने परिवार के साथ घर में रहकर सजा का दिन काट रहे है।
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कुछ भी हो आज के हालतों से इतना तो दिख ही रहा है कि कानून की नज़र हर तबके के लोगो के लिए अलग है, भले ही सजा सुनाकर लोगो को ये दिखाने का प्रयास किया जाता हो कि कानून सबके लिए एक जैसा है। लेकिन सजा के बाद जो खास कैदियों के साथ किया जाता है उस पर भी एक निष्पक्ष जाँच होनी चाहिए, जिसकी रिपोर्ट जनता को बतानी चाहिए, जिससे कि पता चले कि कानून और खास ओहदे वाले दौलतमन्द लोगों के बीच क्या सम्बन्ध है?

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