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फेलिन के थमते ही इस पर चल रही सियासत भी थम सी गयी है। हिन्दुस्तान की कैसी ये राजनीति है कि जहाँ देश की लाखों जनता सरकार से मदद का इतंजार कर रही थी वही सरकार के मंत्री इस पर सियासती दाँव-पेच खेलने में जुटी थी। वो भी इस बात पर कि फेलिन में कम लोगो की जानें गयी, इसमें सभी अपना-अपना क्रेडिट बता रहे थे, लेकिन अगर बहुत संख्या में जानें गई होती तो भी इस पर खूब राजनीति होती। ये तो मौसम विभाग के वैज्ञानिकों के अग्रिम चेतावनी का परिणाम था कि लोग पहले ही सावधान हो गये और सुरक्षित स्थानों पर शरण ले लिया। फेलिन के थमने से सियासती दाँव-पेच भले ही थम गया हो लेकिन उड़ीसा, झारखंड, बिहार और प.बंगाल में आने वाले कुछ हफ्तों और महीनों तक समस्या थमने के बजाय बढ़ने ही वाली है। किसी का ध्यान अभी तक इस पर नही है, क्योंकि राजनीति सिर्फ समस्याओं के बाद होती है, पहले तो बहुत कुछ कार्य करना पड़ता है, और समस्या घटित होने के बाद तो बस बात ही रह जाती है, इसमें भारतीय नेता व मंत्री बहुत ही माहिर है।
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समस्या ये है कि अभी उन राज्यों में लोग भूख से मर रहे है, राहत कर्मी वहाँ तक पहुँचे नही है, जहाँ बाढ़ की आशंकाये है वहाँ कुछ किया नही जा रहा है। आने वाले कुछ हफ्तों में जल-जमाव होने के कारण महामारी फैलने वाली है, उसके लिए सरकार और मंत्री कुछ बोल नही रहे है, हाँ .. बोलेंगे तब, जब भूख से बहुत लोग मर जायेंगे, बाढ़ से कुछ गाँव और शहर डूब जायेंगे, महामारी से लोग मरने लगेंगे, फिर मंत्रियों को अपने सियासती दाँव खेलने का एक विषय मिल जायेगा। फिर जमकर कुछ दिन लोग अपने कुर्सियों के लिए शह और मात का खेल खेलेंगे..। नेताओं और मंत्रियों को सिर्फ अपने कुर्सी की फिक्र है न कि जनता और जनता के समस्याओं की।
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जहाँ देश की लाखों जनता बेघर हो गई हो, जहाँ भूखमरी से लोग मर रहे हो, पानी की किल्लत हो, बिजली नहीं हो, तबाही का ऐसा मंजर सोच कर भी रूह तक हिल जाती हो, लेकिन वहीं सरकार के मंत्री अपने ऑफिस में चाय की चुस्की ले कर, इसमें राजनीतिक फायदा कैसे हो, इस पर सोचते है। अगर नेता या मंत्री अगर थोड़ी सी मदद कर भी दे तो उसका इतना बड़ा हंगामा करेंगे जैसे कि वो समस्याओं को अपने सिर पर ले लिया हो…। देखने वाली बात ये कि सरकार द्वारा उठाये गये कदमों से इस बार फेलिन से त्रस्त जनता की दीवाली किस तरह से मनती है।
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