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विकासशील देश भारत के विकासपुरूष और भावी पीएम के उर्जा संरक्षण की योजना एक तर्क को तो सटीक सिद्ध करता ही है कि “अगर अपने बच्चों का पेट भरने की हैसियत न हो तो उसे उपवास के और कम खाने के फायदे बताओ”। नरेन्द्र मोदी ये कहते है कि “पूर्णिमा की रात बिजली के खम्भों की बत्ती गुल कर हम काफी ईंधन बचा सकते है”। लेकिन पूर्णिमा की रात को अगर बादल हो आसमान में या घना कोहरा हो तो क्या मोदी जी फिर भी बत्ती गुल करवायेंगे?
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हंसी आती है ऐसी योजनाओं पर, मोदी जी को रात की बत्ती दिखाई दे गई लेकिन दिन की बत्ती दिखाई नहीं पड़ी जो हर गाँव-शहरों के सड़कों और गलियों में लगे बिजली के सभी खम्भों की बत्तियाँ दिन में भी सूरज को मुँह छिपाने पर मजबूर करती रहती है। क्या किसी के पास ऐसी कोई योजना नही कि हर दिन के इस तरह से अनावश्यक बिजली के खपत को बचाया जा सके। मोदी जी महीने में एक रात की बिजली बचाने की योजना को सुनाकर फूले नही समा रहे है, यहाँ तो हर दिन इतनी बिजली बर्बाद होती है जितने वो एक रात में बचा सकते है, क्या वो इसे नहीं रोक सकते? इस बात से ये स्पष्ट है कि वो हर दिन की अनावश्यक रूप से उर्जा की बर्बादी को नही रोक सकते। मोदी जी का ये बयान सिर्फ एक राजनीतिक फायदे की बात से कम नहीं लगता।
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सभी जानते है उर्जा की खपत कभी घटने वाली नही, तो फिर योजना भी, उर्जा कैसे बढ़े इसकी होनी चाहिए न कि उर्जा की खपत को कम करने की। अनावश्यक रूप से उर्जा की बर्बादी रोकने की योजना होनी चाहिए न कि तुच्छ और लुभावनी बातें बोलकर जनता की आँखों पर पट्टी बाँधकर अपने कुर्सी के लिए वोट पाने की योजना।
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मोदी जी साईकिल किसे चलाने को कह रहे है… गरीब जनता के लिए तो पैदल या साईकिल ही सहारा था और अभी तक है। और जो एसी कार में चलते है क्या वो भरी धूप में साईकिल से ऑफिस कभी जा सकेंगे। ऐसी कभी हो नही सकता। और दूसरी बात ये कि एक दिन की उर्जा बचा कर कब तक चलेंगे लोग..
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