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अंधविश्वास के भरोसे सरकार

BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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चरमरा चुकी देश की अर्थव्यवस्था पर धराशायी हो चुके सभी विद्वान अर्थशास्त्री और सरकार ने भी अब शायद आस्था और अन्धविश्वास का शरण लेना उचित समझा है। लेकिन मेरी समझ में ये नहीं आ रहा है कि शोभन सरकार ने भी डांडियाखेड़ा में हजारों टन सोने के खजाने के सपने देखे, पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिकों के अनुसार भी खजाने के धातु चुम्बकीय नहीं है, पर आज इस खुदाई से लोहा क्यों निकला? क्या वैज्ञानिकों ने भी सोने के सपने देखे? या आस्था और अंधविश्वास के दौर में वैज्ञानिक अन्वेषणों का कोई महत्व न रहा? या भारत सरकार को अब इसी खजाने पर देश का भविष्य टिका हुआ दिख रहा है? कुछ भी हो सरकार जनता से जो छल करने का ढ़ोंग कर रही है, अपने जिम्मेदारियों से भागती हुई दिखाई दे रही है वह ज्यादा दिन चल नही सकता… ।
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आस्था और अंधविश्वास के नाम पर इंसान को अन्दर से खोखला करने वाले हर साधु-संतों पर से पर्दा भी बहुत जल्द उठ जायेगा। इन आस्थाओं के चक्कर में पड़कर आज हर कोई अपना कर्तव्य भूलता हुआ दिख रहा है। व्रत, त्योहार, देवी-देवताओं की पूजा भी लोग सिर्फ डर की वजह किए जा रहे है, सिर्फ परम्परा निभाई जा रही है और कुछ नही… लगता है सरकार भी अब देश की अर्थव्यवस्था ठीक करने के लिए इन्हीं संतो से कोई यज्ञ न करवाने लगे। ये सब कामचोरो की निशानी है।
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सरकार को फिक्र नहीं है कि एक आम आदमी आज इस महंगाई के दौर में अपना परिवार किस तरह चलाने पर मजबूर हो रहा है? आज अगर वह एक सब्जी भी लेने जाता है तो उसका दाम सुनकर दिल ठिठक जाता है, सहम जाता है, उसके इरादे बदल जाते है। सरकारी ऑफिसों में बैठे रिश्वतखोरों और भ्रष्ट अधिकारियों के वेतन में भत्ता बढ़ाकर सरकार निकल जाती है लेकिन एक आम आदमी जो छोटे-छोटे व्यापार चलाकर अपना गुजारा करते है उनका क्या होगा, क्या सरकार कभी सोचती है? फिर सरकार किस लिए? किसके लिये? और क्यों?

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