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माटी का दिया…

BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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मुझे एक बना दो दिया माटी का
कण-कण आलोकित कर पाउँ
फैल रहा जग में अँधियारा
कण-कण रौशन कर जाउँ
हुआ क्या जो नन्हा-सा दिया हूँ
जग सारा रौशन कर सकता हूँ
जाते-जाते भी, पथ बताने को
एक बार तेज मैं जल सकता हूँ
चारो तरफ जो फैल रहा है
अप्रेम, अधर्म का एक आँचल
अपने छोटे लौ की कसम
स्नेह, प्रेम मैं भर सकता हूँ
दीपोत्सव जो आया है
मन में उमंग ईक लाया है
अन्धियारा लेकिन मन में बैठा
तीन-पाँच कुछ सोच रहा है
मन में प्रकाश फैलाने को
प्रेम दीप मैं बन जाउँ
ईष्या, अहम की कालिख को
इसी दीवाली मिटा पाउँ

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