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कितना कठिन है अब मुस्कुराना

BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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मुझे याद है जब हम छोटे थे, सुन्दर-सुन्दर बातों के छोटे-छोटे लेबिल को अपने दरवाजे के चौखट पर चिपकाना अच्छी बात होती थी। भले ही कोई उसका पालन करे या न करे ये दूसरी बात है। उन सभी में जो सबसे आसान और सुन्दर बात थी “मुस्कुराते रहो” और इसे अंग्रेजी में भी “Keep Smiling” का लेबल लगाना काफी प्रचलित था। मैने भी इसे अपने दरवाजे पर चस्पाया था। तब हम ये सोचा करते थे कि इसमें कौन सी नई बात है “मुस्कुराते रहो”। लेकिन आज खुद और आस-पास के लोगो के रहन-सहन को देखकर समझ में आता है कि वो “मुस्कुराते रहो” वाला लेबल कितना प्रासंगिक था, कितना अर्थपूर्ण था और आज भी है। आज ये छोटी और आसान सी बात कितनी कठिन होती जा रही है। मुस्कुराहट हर चेहरे से कैसे गायब हो रही है। आजकल बनावटी मुस्कुराहटों का प्रचलन काफी जोरों पर है। क्योंकि अब निरर्थक भागते-दौड़ते और अपने जिम्मेदारियों के बोझ तले दब कर जो हँस नही पाते उनको ही समझदार कहा जाता है। हँसने और मुस्कुराने वालों को लोग नासमझ और “अभी बच्चे हो, तुम्हें भी धीरे-धीरे समझ में आ जाएगा” कहकर उसे अनुत्तरित कर देते है। मुस्कुराने की अब कोई कीमत नही रही और जिसकी कोई कीमत नही, अब वो बाजार में बिकती नहीं, आज हर एक शय बाजारू हो गया है। रिश्ते, प्रेम, एहसास, बड़े-छोटे, और शिष्टाचार अब कहीं दिख नही रहे है, अगर कभी दिखते भी है तो बाजार में मोल भाव करते दिख जाते है। अब यहाँ हर एक शय बिकाउ हो गया है।
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जीवन जीना भी एक कला है, और इस जीवन में मुस्कुराना और भी एक विशिष्ट कला। चाहे सुख हो या दुख, जैसा भी पल हो, हर पल में जो मुस्कुराता रहे, जिसे अपनी जिन्दगी से कोई शिकवा न रहे, वही महान है, जिस पर इस जगत के किसी माया का कोई प्रभाव न हो, और वो मस्ती में अपनी जिन्दगी में आगे बढ़ता ही रहे, वही जीता है। ऐसा नही है कि ये सिर्फ मै ही जानता हूँ, ये बातें आम है, सभी जानते है, इसमें कुछ नया नही है, बहुत पुरानी बातें है ये लेकिन पुरानी भी इतनी हो गई है कि इस पर धूल जम गया है। अनावश्यक महत्वाकांक्षाओं को आवश्यक बनाकर उसे पाने के पीछे भाग कर अपना जीवन नरक बनाया जाता है। अपनी मुस्कुराहट को अपने एक मंजिल मकान में दबाकर पड़ोसी के तीन मंज़िल बन रहे मकानों के चक्कर में अपनी हंसती-खेलती जिन्दगी में अपने ही हाथों जहर घोल लेते है। आज जरूरत है जिन्दगी में उन छोटी-छोटी बातों को व्यवहार में लाने की, व्यर्थ की घुटती जिंदगी को खुले आसमान में मुस्कुराने का मौका देने की, जरूरत है उन छोटे-छोटे मुस्कुराहटों को इकट्ठा करने की, आनन्द लेने की।
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जीवन में हर तरह के एहसास मन से ही तो आते है, तो अगर हम मन पर आसानी से समझ कर विजय पा ले तो हम हर पल में मुस्कुरा सकते है। इतना ख्याल रहे कि मन पर विजय पाने के लिए मन से जबरदस्ती नही हो, अन्यथा मन विकृत हो सकता है। सब कुछ मन पर ही निर्भर करता है, कि क्या हमारी आवश्यकता है, और क्या नहीं, क्या पाना है और क्या नही।
आप सबने सुना होगा, एक बहुत ही प्रचलित भजन में कवि ने भी कहा है –
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सुख की कलियाँ दुख के काँटे
मन सब का आधार

मन उजियारा जब-जब फैले
जग उजियारा होए
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आपस के प्रेम, भाईचारे सब कुछ विलीन होते जा रहे है। किसी के दो गज जमीन हथिया कर या लेन-देन में बेईमानी करके एक-दूसरे से आगे से निकलना चाहते है, दूसरे की टाँग खीचकर उसे पीछे करना चाहते है। इन सब में प्रेम, रिश्ते, भाईचारे और कई तरह के शिष्टाचार पिसते जा रहे है। छोटी-छोटी बातों पर लोग एक-दूसरे के जान लेने पर उतारू हो जाते है, और ले भी लेते है, बड़ी आसानी से। आज इंसान का जीवन बड़ा ही सस्ता हो गया है। सच्ची घटना है – कल ही मेरे ऑफिस के सामने दिन-दहाड़े एक दुकान वाले को गोली मार दी, पता चला कि घर के कुछ जमीनी मामले थे। क्या मिलता है थोड़े जमीन ज्यादा रखकर।
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संसार मे जो कुछ भी प्रकृति का है वो हर तरह से किसी-न-किसी रूप से उपयोगी है चाहे वो कोई पेड़-पौधे हो या जंतु हो, उसके मरने के बाद भी उसका उपयोग होता है। लेकिन एक मनुष्य ही है जिसका कोई उपयोग नही इसके मरने के बाद, सब मिट्टी हो जाता है। फिर भी वो थोड़े से पाने के लिए अपनी इंसानियत पर बड़ी आसानी से दाग लगा जाता है, बाद में कुछ भी तो नही मिलता उसे, कुछ भी तो नही होता उसका, फिर ये व्यभिचार क्यों, अपनो का खून कर, दो गज जमीन लेकर क्या पाना चाहता है इंसान, इन सब के जड़ में जो बातें है वो सिर्फ मुस्कुराहट की कमी और अपने मन से दूर होकर जीना है।
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मन बड़ा ही निर्मल है, कोमल है, स्वच्छ है, सब के हित की सोचने वाला है, लेकिन इस मनुष्य ने बाहर के निरर्थक महत्वाकांक्षाओं के बोझ से इस निर्मल मन को कुचल दिया है। अब मनुष्य में मनुष्यता कम, हैवानियत ज्यादा और जल्द ही दिखाई दे जाती है, जिसका परिणाम है कि समाज आज विकृत होता जा रहा है। समाज व्यभिचार, भ्रष्टाचार, अत्याचार और बलात्कार से भर गया है। मन की मुस्कुराहटें समाप्त हो गई है। खरीदनें और बिकने वाली मुस्कुराहटें हर चेहरे पर है, जिससे सही मनुष्य का आकलन करना मुश्किल हो गया है। अगर इस समाज को सही मनुष्यों से सजाना है तो हर चेहरे पर सच्ची मुस्कुराहटें पैदा करनी ही होंगी। मन पर पुती कालिखों को हमें साफ कर उजाला फैलाना होगा ताकि पूरा जगत रोशनी से भर जाए।

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