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लाचार

BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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आ गया था गर्भ से
बीज मैं बाहर अब
हंस रहे थे सब यहाँ
बस रो रहा था मैं
डर रहा था और
सहमा हुआ था मैं
दृश्य लीला मानवों का
गर्भ से देखा था जो
क्या करेंगे साथ मेरे
सोचकर ये बात अब।
.
मैं इसी सदमें था
मैं इसी उलझन में था
कि अचानक पास कोई
हाथ में कुछ खास लेकर
आ गया मुझको मनाने
आ गया मुझको हंसाने
मै भी कुछ ये सोचकर कि
आयेंगे बहुत दर्द के दिन
एक पल तो मुस्कुरा लें
इसलिए जरा हंसने लगा अब।
.
हंसते हुए हमने ये देखा
हालात समझने का सा था
सब हंस रहे थे
मै हंसा रहा था
रोता जब था मैं वहाँ
रंग-बिरंगे मिलते थे कुछ
और लाचार बेवस की तरह
एक हाथ से दूजे हाथ को
एक खिलौना के लिए
खिलौना मैं बनता रहा अब।
.
निकलकर जिस जाल से
आया था जिस चाह से
दूर-दूर तक थे नही
उसके एक भी किरण
इसी आस में बैठा था मैं
कुछ पास में भी थे बहुत
कर रहा था इंतजार मै
अपनी भी कुछ सुनाने को
इसी उधेड़बुन में बस
दिन-रात युँ कटता रहा अब।

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