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मोहब्बत के अफसाने

BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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मोहब्बत के अफसाने कम हो रहे है।
शहर में मज़हबी दंगे बहुत हो रहे है।।
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धुली थी यहीं माँग बहू बेटियों की,
आज देखा वहाँ तो तिजारत हो रहे है।
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किसकी थी आरज़ू ये फिक़्र उसका नही,
हसरतें कैसी भी हों मुक्कमल हो रहे है।
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कल तक तो थी उनकी यहीं झोपड़ी,
किया ऐसा क्या जो वो महल हो रहे है।
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दो पल भी भरोसा न होता किसी का,
मगर खड़े उनको यहाँ अज़ल हो रहे है।
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अच्छी बातें न दिखती है नित होते हुए,
उनकी तो बस कहानी, ग़ज़ल हो रहे है।
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बदल गये है जमाने देख ले ऐ “शजर”,
रग़बतें दिल से अब मुख्तसर हो रहे है।

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