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राजनीति की आम व खास चालें

BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस के समर्थन से “आप” ने विश्वास मत हासिल कर सरकार तो बना लिया है, लेकिन इस सरकार की उम्र ज्यादा दिखाई नहीं पड़ती। क्योंकि बहस सत्र के दौरान सभी नेताओ के भाषणों से यह साफ था कि नेताओं की निगाहें कहीं थी और निशाना कहीं और लगा रहे थे। कांग्रेस सिर्फ भ्रष्टाचार विरोधी दलों के साथ मिलकर आने वाले 6 महीनों में अपनी भ्रष्ट छवि को सुधारना चाहती है। कांग्रेस को इससे परहेज नहीं कि दिल्ली की तत्कालीन सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाये या आम आदमी की हालात को सुधारे या चुपचाप बैठे रहे। अगर “आप” अपने वादों को पूरा करती है तो भी इसका क्रेडिट कांग्रेस लेना चाहेगी, अगर किसी वजह से “आप” अपने वादो को पूरा नही कर पाती है तो भी काँग्रेस उस पार्टी के साथ खड़े होते हुए दिखाना चाहेगी जिसने पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जन-आन्दोलन छेड़ा।
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“आप” के राजनीति मे आने का ये प्रभाव ही है कि, काँग्रेस भी भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने लगी है या आम जनता की जरूरतों के प्रति नरमी दिखाने के ढ़कोसले कर रही है। लेकिन दोनों स्थितियों से सिर्फ काँग्रेस द्वारा आने वाले लोकसभा के चुनाव में जनता को गुमराह करने की मंशा जैसी बू आती है। इसका प्रमाण दिल्ली में बिजली दरों में कमी होने के साथ ही व “आप” द्वारा हरियाणा की राजनीति में हस्तक्षेप से वहाँ की काँग्रेस सरकार भी बिजली दरों में रियायत का रूख करना उचित समझा। फिर अपने ही सिर को मूसल में डालते हुए महाराष्ट्र के बहुचर्चित आदर्श सोसायटी घोटाले की रिपोर्ट को आंशिक रूप से ही सही स्वीकार किया। अब इस पर आने वाले 6 महीनो या लोकसभा चुनाव तक क्या फैसला होगा ये तो जनता देखेगी। तो कांग्रेस इस देश की वह खास पार्टी है जो बिना सत्ता के खुद को बेकार समझती है, और इस सत्ता के लिए कुछ भी कर सकती है। और सत्ता मिलने के बाद इसे अपनी जेब के सिवा कुछ दिखाई नही देता।
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इसे संयुक्त रूप से समझा जाना चाहिए कि अन्ना हजारे व उनके समर्थको (अरविन्द केजरीवाल, मनीष शिशोदिया, व अन्य) ने भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए जो आन्दोलन शुरू किया था, ये आम आदमी पार्टी उसी आन्दोलन की वो शाखा है जो अपने साथ काँटों को रखते हुए इस राजनीति की बगिया में गुलाब उगाना चाहती है। ये उसी आन्दोलन का नतीजा है कि आज देश की जनता हो या पुरानी पार्टियाँ सबके उसूल बदले-बदले दिखाई पड़ रहे है। राजनीति एक नया दौर शुरू हो गया है। फिर भी हम राजनीति के इस बदलते दौर में हम ये उम्मीद करते है कि सभी राजनेता आम जनता के जरूरतों के प्रति सदभाव रखते हुए फैसला करे। आम जनता लाभांवित हो, और जीने की फिर से उम्मीद करे।
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जैसे एक बाप के दो बेटे होते है एक तो सीधा-सादा होता है जो सच और सादगी से जीना चाहता है और दूसरा कुछ झूठ, चोरी व चालबाजी करते हुए आगे बढ़ने की कोशिश करता है। हम सभी जानते है कि दोनों में आगे कौन निकलता है, और किसको सच्ची कामयाबी मिलती है। कौन अपने जीवन में खुश रहता है और कौन परेशानियाँ मोल लेता है। ऐसा ही कुछ आजकल दिल्ली व देश की राजनीति में होता हुआ दिख रहा है। जहाँ अरविन्द केजरीवाल अपना सब कुछ भूलकर सिर्फ आम आदमी की भाषा बोल रहे है, सोच रहे है व उसके प्रति समर्पित दिख रहे है। वहीं दूसरी ओर अन्य पार्टियाँ व नेतागण अपने खास मतलब से या तो अरविन्द केजरीवाल से जुड़ रहे है, समर्थन दे रहे है, या उनके प्रति नरमी बरत रहे है। जैसा कि कुछ लोग अरविन्द केजरीवाल के प्रति सोचते है कि अभी तो ये राजनीति में नए है इसलिए ईमानदारी का चोगा पहने घूमते है, बाद में सब भ्रष्ट ही हो जाते है। ईश्वर न करे कि कभी ऐसा हो। अगर अरविन्द केजरीवाल सच में ईमानदारी से काम करते रहे तो वो दिन दूर नही कि पूरे देश में खुशहाली होगी, आम जनता भी कुछ सपने देख सकेगी, उन सपनों को हक़ीक़त में बदलने के लिए कदम आगे बढ़ा सकेगी। अरविन्द केजरीवाल की यही आम भाषा उनकी ताकत है जो उन्हें आगे भी सफलता दिलायेगी, वो ये जानते है कि खास बनने के लिए भ्रष्टाचार की राह अपनानी होगी और वो ये करना पसन्द नही करेंगे।

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