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समझ नही आता कि 6 महीने भी बीतने को हो जायेंगे मुजफ्फरनगर के उन दंगो को हुए लेकिन राहत शिविर आज तक चलाये जा रहे है, क्यों? ये राहत शिविर पीडितों को जिन्दा रखने के लिए है या राजनीतिक मुद्दो को? अब उन शिविरों में लोग आपस में क्यों नही लड़ते जबकि उस शिविर में तो अलग-अलग समुदाय के लोगों ने शरण लिया हुआ है। इससे स्पष्ट है दंगे करने वाले आम लोग नही होते, किसी और के द्वारा जानबूझ कर कराए जाते है। इस तरह की परिस्थिति अनेक तरह के सवाल भी खड़े करता है। जिनका जबाव देना उत्तर प्रदेश सरकार के लिए महत्वपूर्ण है। महत्वपूर्ण इस परिप्रेक्ष्य में कि इन शिविरों में राजनेता व मंत्री जब चाहे एक-दूसरे पार्टी की चुगली कर जाते है और फिर अपने महलों में घुसकर जश्न में डूब जाते है। आखिर सरकार क्या चाहती है- पीड़ितों को अपना घर-बार न मिले, युँ ही शिविरों में मरते रहे और राजनीतिक मुद्दे बनते रहे?
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जो महीनों से इन राहत शिविरों में रह रहे है उनके जीवन का विकास किस तरह से होगा, सरकार इस पर क्या सोच रही है? यह निराशाजनक है कि सरकार इन सबको भूलकर अपनी महफिल सजा रही है, अभिनेत्रियों का नाच देख रही है। चिंता का विषय यह और भी ज्यादा है कि आखिर बिहार का कुख्यात नक्सली कमांडर चन्दन मेरठ में कैसे पहुँचा? और वो भी सैन्य ठिकाने के आसपास? यह बिल्कुल हो सकता है कि वो एक बड़े घटना को अंजाम देने के लिए सेना की गतिविधियों की टोह ले रहा हो। चन्दन जो कि बिहार के गया जिले में सक्रिय होकर अपना खूनी कारोबार चलाता है, वो उत्तर प्रदेश में क्या कर रहा है? क्या अब उत्तर प्रदेश में भी नक्सलियों का कारोबार चलेगा? अखिलेश यादव की अगर इसी तरह मुलायमगिरी चलती रही तो वो दिन दूर नही जब बिहार, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों की तरह अब उत्तर प्रदेश भी नक्सलियों का अड्डा बन जायेगा, जिसमें मुजफ्फरनगर के राहत शिविरों में पैदा हो रहे बच्चे व लोग जो गुमनाम जिन्दगी जी रहे है, जिनका भविष्य अन्धेरे में है, उन्हे आसानी से बहका कर नक्सली बनाने के राह पर लाया जा सकता है, और हो सकता है कि ऐसा हुआ भी हो। क्या सरकार ने उन पीड़ितों को नक्सली बनने के लिए छोड़ दिया है? क्या अब उनकी जिन्दगी में कोई रोशनी नहीं?
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जब अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया तो प्रदेश के युवा वर्ग में एक आशा की किरण जली थी कि इस बार कुछ और हो या न हो युवा वर्ग को एक नया समाज देखने को मिलेगा। जातिवाद, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे पुराने मुद्दे जनता को परेशान नहीं करेंगे। लेकिन उत्तर प्रदेश तो फिर उसी राह पर है जहाँ मंत्री, अफसर सभी अपना काम भूलकर या तो सोते है या फिर किसी जश्न के माहोल का लुत्फ लेते है। हर तरफ दंगे और समाज के हर क्षेत्र मे जातिवाद का माहौल है। अखिलेश की अनुमानित कठोर सरकार अब भी मुलायम जैसी चल रही है। ऐसे मे उत्तर प्रदेश विकास के किस राह पर चल रहा है ये समझ से परे है। अगर अखिलेश यादव ये सोच रहे होंगे कि लैपटॉप बाँटकर उन्हें अगले चुनाव में वोट मिल जायेगा तो फिर वो ये भूल रहे है कि जनता की दो नही हजार आँखें होती है जिसके हाथ में हथियार तो नहीं लेकिन सत्ता पलट देने तक की क्षमता होती है।
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