BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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अब रंग-ए-मोहब्बत, बेअमल हो रहे है।
मज़हबी दंगे यहाँ, आजकल हो रहे है।
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माँग धुलने की अब, कोई नहीं है निशाँ
गोया धन्धे में, अदल-ओ-बदल हो रहे है।
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किसकी थी आरज़ू, ये फिक़्र उसका नही,
हसरतें कैसी भी हों, मुक्कमल हो रहे है।
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कल तक तो थी, उनकी यहीं झोपड़ी,
किया ऐसा क्या, जो वो महल हो रहे है।
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दो पल भी भरोसा, न होता किसी का,
मगर खड़े उनको, यहाँ अज़ल हो रहे है।
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अच्छी बातें न दिखती, है नित होते हुए,
उनकी तो बस कहानी, ग़ज़ल हो रहे है।
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बदल गये है जमाने, देख ले ऐ “शजर”,
ऐन-ए-वस्ल में, अब ओझल हो रहे है।
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