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बहुत बड़ा कलेजा चाहिए, जिगर चाहिए , निष्ठुर दिल चाहिए उसे अगर वो अपने सिद्धांतो पर जिंदगी जीना चाहता है । नही तो बिना पतवार के नाव की तरह नदी की चारा मे बहते चले जाओ, जिधर धारा ले जाए चलते चले जाओ । फिर जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ कर खुश होने का नाटक कर लो, संतुष्ट हो लो जिंदगी से
अगर पतवार भी ले लिया है और नदी के बहाव के उल्टी पतवार चलाने में मन में बहुत तरह के सवाल भी उठ रहे है तो फिर हालत ये होगी कि न तो जीने की इच्छा होगी और कुछ पाए बिना मरने मे भी कायरता महसूस होगी
अपने सिद्धांतो पर चलने के लिए आपको दुनिया से लड़ने की हिम्मत होनी चाहिए, दुनिया में समाज और वो अपने लोग भी है जो आपके अपने है अपने परिवार के है … सबसे आपको लड़ना होगा । क्योंकि परिवार और समाज अपने सिद्धांत पर चलने का खतरा मोल नही लेना चाहता । सब धारा की दिशा में बहने वाले है … कोई भी कोशिश करने वालों मे से नही है । डूब गए तो रोने बैठ गए, कुछ पा लिए तो खुश हो लिए । सब कुछ किस्मत और ईश्वर के भरोसे छोड़ रखा है । और मजे की बात ये है कि ईश्वर ने भी इस धरती को इंसान के भरोसे छोड़ रखा है । हाँ कोशिश के नाम पर समाज और परिवार दकियानूसी कृत्य और पाखंड जरूर कर सकता है ।
कुछ इक्के-दुक्के लोग ही होते है जो समाज से, परिवार से लड़कर कुछ काम कर जाते है जिसकी बदौलत वो इस दुनिया में सदियों तक जिंदा रहते है । नही तो धारा के साथ बहने वाले तो नित्य ही जीते और मरते है जिन्हे दो-चार दिन में अपने ही भूल जाते है ।
फैसला आपको करना है, आपकी जिंदगी है , आपको चलना है , आपको पाना है , आपको खोना है, फैसला आपको करना है कि आप जीने वालो में शामिल होना चाहते है या मरने वालों में ….
धन्यवाद !
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