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अभी बीते कुछ दिनों और आने वाले कुछ दिनों में विभिन्न तरह के परीक्षाओं के परिणाम सुनने को मिले है और मिलेंगे । पिछले कुछ वर्षो मे देखने में ये आया है कि हमारी बेटियाँ बेटो से अव्वल रही है। मै उन सभी बेटियों के मेहनत, लगन और कुछ करने के जुनून को बहुत सारी शुभकामनाएँ देता हूँ कि इसी तरह वो अपने हौसले को जज्बे को कायम रखे। हमारी बेटियाँ जब तक शिक्षित नहीं होंगी समाज शिक्षित नही हो सकता । समाज को बदलने में, बनाने में, उसे सही रास्ते पर ले जाने में बेटियों की अहम भूमिका होती है । इसलिए अगर बेटियाँ शिक्षित हो रही है तो आनेवाले समय मे समाज के लिए ये शुभ संकेत है ।
“बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” के नारे को लेकर सरकार या समाज बेटियों को तो पढ़ा रही है लेकिन इस क्रम में बेटों को भूल गयी है । बेटे की क्या जिम्मेदारी होनी चाहिए बेटो को बताना भूल गई है । इसलिए हर क्षेत्र में आज बेटे पिछड़ रहे है, उनके संखयाओ में भी कमी आ रही है। रूचि में भी कमी आ रही है । आखिर समाज को, सरकार को ये भी सोचना चाहिए कि आखिर लड़के क्यों पिछ्ड़ रहे है, लड़के कहाँ जा रहे है, उनकी रूचि किधर जा रही है? जहाँ तक सवाल कालेज या पढ़ाई पर होने वाले खर्च का है तो लड़कियों से ज्यादा खर्च लड़कों पर किए जाते है। फिर आखिर क्यों होता है ऐसा ? ऐसा इसलिए भी होता है कि माँ-बाप लड़कियों को काँलेज तो भेजते है साथ-ही-साथ उस पर नजर भी रखते है। लेकिन लड़को के मामले में ढ़ीले पर जाते है और ये नही सोचते कि आखिर लड़का रोज-रोज स्कूल-काँलेज से देर से क्यों आता है? लड़कियों से तो सवाल करते है कि तुम किसके साथ गई थी, किसके साथ आई थी, इतने देर कहाँ थी… लेकिन लड़को से सवाल करने में ढ़ीले पर जाते है । इसलिए लड़के अच्छे कामों में अव्वल कम और जुर्म के रास्ते पर जाते हुए ज्यादा दिखाई पड़ते है।
हमारे लड़कों में, युवाओं में, नैतिक और मानवीय मूल्यों के पतन होने की वजह है जो वो जुर्म करते समय कुछ सोच नही पाते और किसी भी तरह के जुर्म कर बैठते है.. कुछ बाद में पछताते है तो कुछ युवा उस दलदल से निकल नही पाते। और मुझे नही लगता कि नैतिक और मानवीय मूल्यों का अर्थ स्कूल-काँलेज की कुछ किताबें और शिक्षकों के व्याख्यान समझा पायेंगे, जहाँ पढ़ाई का मतलब सिर्फ टॉप आने भर से है । टॉप तो हो जाते है, डिग्रियाँ तो हासिल कर लेते है लेकिन मानवीय और नैतिक मूल्यों का व्यावहारिक ज्ञान नही होता है उन्हें और वह बिना सोचे समझे कुछ भी कर जाते है । और मुझे ये लगता है ऐसा व्यावहारिक ज्ञान सिर्फ और सिर्फ एक शिक्षित परिवार ही दे सकता है । जिस परिवार में शिक्षित माँ-बाप हो और उनका लड़का उनकी निगरानी में शिक्षित हो रहा हो तो मुझे नही लगता कि वह लड़का कभी भी किसी जुर्म के रास्ते पर जा सकता है ।
जिस तरह से हमारी लड़कियाँ आज शिक्षा ग्रहण कर रही है तो लगता है कि आने वाले समय में समाज के सभी बच्चे नैतिक मूल्यों और मानवीय मूल्यों से पूरी तरह पोषित होंगे। फिर समाज में हो रहे जुर्मों की संख्या में भी कमी आयेंगी।
इसमें भी कोई हर्ज नही कि लड़कियाँ आज शिक्षित होकर अपने पैरों खड़े होने की होड़ में राष्ट्रीय, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में या सरकारी नौकरी भी कर रही है । लेकिन जब वह अपने परिवार में जाती है उनके बच्चे भी होते है तब भी वह नौकरी करती है और उनके बच्चे जैसे ही अपने पैरों पर चलना शुरू करते है कि उनका स्कूल और फिर कॉलेज का दौर शुरू हो जाता है । तो सवाल ये उठता है कि उन बच्चों का क्या होगा? माँ-बाप अपने बच्चों के लिए नौकर रख लेते है पालने के लिए, पैसे खर्च करते है और समझते है कि उनके बच्चे पल रहे है लेकिन वो ये क्यों भूल जाते है कि उन बच्चों को माँ-बाप का प्यार कैसे मिलेगा, जब तक माँ-बाप अपना अनुभव अपने बच्चों के साथ शेयर नही करेंगे तब तक बच्चें कैसे अपनी जिंदगी के बारे में कुछ सोचेंगे, ऐसे बच्चे फिर बिना किसी सही गलत के बारे में सोचे किसी भी रास्ते निकल पड़ते है जहाँ से उनका वापस आना मुमकिन नहीं रहता ।
कभी-कभी मुझे हैरत होती है जब मै देखता हूँ कि भारी संख्या में लडकियाँ पुलिस की जॉब करने पहुँचती है। कैसे वह अपने बच्चों और नौकरी के बीच प्रबंधन कर पाती है ? अगर वह अपने बच्चों का ध्यान नहीं रख पायी तो क्या होगा? मतलब तो ये होगा कि एक तरफ तो वह जुर्म रोकने लिए पुलिस बन कर खड़ी है वही दूसरी तरफ जुर्म करने वालो को पैदा कर रही है ।
कभी कभी लगता है कि लड़कियाँ शिक्षित होकर देश की सेवा कर रही है … लेकिन अगर समाज नही सम्भला तो देश कैसे सम्भलेगा … ?
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