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फिक्र है तो बस वोट या नोट की

BHAGWAN BABU 'SHAJAR'
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crackers


कही फ़िक्र है वोट की, तो कहीं फ़िक्र है नोट की, लेकिन जिसको डर नहीं है वोट की, वह सोचता है देश की। माननीय सुप्रीम कोर्ट अगर पटाखों के लिए मना कर रहा है, तो किसके लिए? क्या वोट और नोट गिनने वाले को देश के आम जनता की फ़िक्र नहीं। वोट और नोट की आड़ में देश की जनता का स्वास्थ्य बेच देने वाले व्यवसायी को यह याद रखना चाहिए था कि गत वर्ष दिवाली के पटाखों के बाद दिल्ली की जो स्थिति हुई थी क्या वो असहनीय नहीं था।


तब लोग सरकार की आलोचना कर रहे थे। रैलियां निकाल रहे थे और आज अगर पटाखे पर पाबंदी लगा दी गई, तो भी रैलियाँ, फिर विरोध। देश की जनता भी अजीब मानसिकता से ग्रसित है, जो पीड़ा के समय रोना, बिलखना और दूसरों को कोसना, गाली देना, रैली करना, मोमबत्ती जलाना तो जानती है, लेकिन अपने गिरेबां में झांकना नहीं जानती। अपने दुःखों से निजात पाने का उपाय करना नहीं चाहती। आखिर क्यों?


पटाखों का लाइसेंस तो सरकार ने इसलिए दे दिया, क्योंकि उसे वोट की फ़िक्र थी। अगर सरकार लाइसेन्स नहीं देती, तो उसके लिए भी आप रलियां निकालते, विरोध करते, विपक्ष उसे भी मुद्दा बनाता। लेकिन आप, आप लाइसेंन्स माँगने क्यों गए थे? क्या आपको अपने बच्चों की फ़िक्र नहीं थी? आप अपने नोट की आड़ में अपने बच्चों का स्वास्थ्य, उसका भविष्य अँधेरे में धकेल देना चाहते हैं।


एक और शख्सियत है समाज में जो धर्म के नाम पर गंदी राजनीति करने वाली राजनीतिक पार्टियों से बिल्कुल भी कम नहीं। जो धर्म के नाम पर लोगों के अंदर वैचारिक वैमनस्यता फैलाकर दंगा करा देने के लिए हमेशा आतुर रहते हैं, जो हिंदू धर्म के ठेकेदार के रूप में जाने जाते है जिनका मानना है कि पटाखो पर बैन का मतलब हिंदु धर्म के आंतरिक मामलो में दखल देना है । उनकी दिवाली हो नही सकती है बिना पटाखों के । क्योंकि अब पटाखें भी हिंदू हो गये है । पटाखे चलाना भी दिवाली की परम्परा में शामिल है । बिना पटाखों के दिवाली कैसे मनाई जा सकती है ? इनके हिसाब से कोई फर्क नही पड़ता अगर परम्परा निभाने में स्वच्छता, और स्वास्थय भी दाँव पर लग जाए, परम्परा निभनी चाहिए बस. दिवाली मननी चाहिए.. बस, लोग मरते है तो मरे… लोग घुटते है तो घुटे… इन लोगों से मेरा एक व्यक्तिगत सवाल है कि आप इस समाज में धर्म के नाम पर क्या कर रहे हो? क्या आपकी जरूरत है इस समाज को ? आपको लगता नही कि आप बेसिर पैर की बात करके जबरदस्ती समाज में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते है … बस… और कोई कारण नही आपके शोर करने का,………… धार्मिक लोग शोर नही करते, शांत रहते है ।

अब देखिए माननीय सुप्रीम कोर्ट की तारीफ होनी चाहिए कि वह अपने फैसले पर अब भी टिका हुआ है । लेकिन फिर भी लोग चोरी छुपे पटाखों का व्यापार करेंगे । पटाखें चलाऐगे.। वह सिर्फ आप जैसे भगवाधारियों की वजह से। अगर आप लोग चाहते तो पटाखों को खुद ही बैन कर सकते थे। और लोग आपकी बात सहज रूप से मानते भी बिना किसी विरोध और क्रोध के। लेकिन नही ….. आपको भी राजनीति करनी है … मंत्री बनने के सपने देख रहे है। धर्म, परम्परा, त्योहार, हिंदुत्व तो सिर्फ एक बहाना है, एक सीढ़ी है, धर्म और हिंदुत्व के सिर पर पैर रखकर आप सत्ता हथियाने वाले एक लालची व्यापारी है और कुछ नही।
मैं आपको बता दूँ कि आज दुनिया में मन के अशांत होने के बहुत से कारण है, इसलिए परम्पराएँ ऐसी होनी चाहिए, त्योहार मनाने का तरीका ऐसा होना चाहिए कि मन को कुछ शांति मिले । आपस में प्रेम हो । हिंदु और हिंदुत्व ने नाम पर डर और द्वेष न हो। नही तो इन त्योहारों का, इन परम्पराओं का भी कोई अस्तित्व बचने वाला है नहीं । क्योंकि इसे मनाने या न मनाने से कुछ होने वाला है नही… अगर मन को शांति भी न मिले तो फिर इसका अस्तित्व खतरे में ही समझिये ।

कृप्या आपस में धर्म और परम्परा के नाम पर कोई वैचारिक मतभेद न फैलाये.. गुटबंदी करके राजनीति न करे..

शांति से दिवाली मनाये, प्रेम और सदभाव बनाये रखे…

आप सभी सदजनों को दिवाली की ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ

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